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भिक्षा विधि का स्वरूप एवं उसके प्रकार ...17 है तथा स्वच्छंद होने से भी बचाती है। सामाजिक स्तर पर यह नियम उत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं। प्रस्तुत अध्याय भिक्षाचार्य के सामान्य स्वरूप से परिचित करवाते हुए उसके निर्वहन में सहयोगी बने यही प्रयत्न किया है। सन्दर्भ सूची 1. अट्ठविधं कम्मखुहं, तेण णिरूत्तं स भिक्खु त्ति। जं भिक्खमेत्तवित्ती, तेण व भिक्खू..।
दशवैकालिक नियुक्ति, 10/241-243 2. गोचराग्रः अग्र: प्रधान आधाकर्मादि परिहारेण स चासौ गौरिव चरणम् उच्चावचकुलेष्वविशेषेण पर्यटनं गोचरः।
उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, पत्र 607 3. गोचरो नाम भ्रमणं....आहाकम्मुद्देसियाइ जगाणंति । गोरिव चरणं गोचर...........भिक्षाटनम् ॥
दशवैकालिक जिनदास चूर्णि, पृ. 167-168 4. जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं। न य पुष्पं किलामेइ, सो य पीणेइ अप्पयं।
एमए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो। विहंगमा व पुप्फेसु, दाण भत्तेसणे रया।।
दशवैकालिकसूत्र, 1/2-3 5. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 19/33
(ख) उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य वृत्ति, 456-457 6. अन्नायउंछं चरई विसुद्धं, जवणट्टया समुयाणं च निच्चं ।
दशवैकालिकसूत्र, 9/3/4 7. दशवैकालिक अगस्त्य चूर्णि, पृ. 242 8. उत्तराध्ययनसूत्र, 19/24 9. दशवैकालिकसूत्र, 5/2/26 10. उत्तराध्ययनसूत्र, 24/11-12 11. पिण्ड निकाये समूहे, संपिंडण पिंडणा य समवाए। समुसरण निचय उवचय, चए ज जुम्मे च रासी य।।
पिण्डनियुक्ति, गा. 2