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________________ 12... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन भिक्षा के अन्य प्रकार आचार्य हरिभद्रसूरि ने अष्टक प्रकरण में भिक्षा के निम्नोक्त तीन प्रकार बतलाये हैं- 1. दीन भिक्षा- अनाथ, अपंग व्यक्तियों के द्वारा उनकी अपनी असमर्थता के कारण मांगकर खाना दीन भिक्षा है। 2. पौरूषघ्नी भिक्षा- जो लोग परिश्रम न करने की वजह से तथा आलस्य एवं अकर्मण्यता के कारण मांगकर खाते हैं, वह पौरूषघ्नी भिक्षा है। 3. सर्व संपत्करी भिक्षा- अहिंसक एवं संयमी मुनियों के द्वारा सहज रूप से प्राप्त निर्दोष भिक्षा ग्रहण करना, सर्वसंपत्करी भिक्षा है। इनमें तीसरा प्रकार सर्वोत्तम माना गया है, दूसरा प्रकार निन्दनीय है और पहला प्रकार लौकिक है, क्योंकि वे निर्धन आदि करुणा के पात्र होने से धर्म की अप्रतिष्ठा के जनक नहीं होते हैं।23 भिक्षा शुद्धि की नवकोटियाँ ___ जैनागमों में कहा गया है कि मुनि का आहार नव कोटि परिशुद्ध होता है। वे नवकोटियाँ निम्न हैं 1. जैन मुनि आहार के लिए न स्वयं हिंसा करते हैं। 2. न दूसरों से हिंसा करवाते हैं। 3. न हिंसा करने वाले का अनुमोदन करते हैं। 4. न स्वयं आहार पकाते हैं। 5. न दूसरों से आहार पकवाते हैं। 6. न आहार पकाने वाले का अनुमोदन करते हैं। 7. न स्वयं कुछ खरीदते हैं। 8. न दूसरों से कुछ खरीदवाते हैं। 9. न खरीदने वाले का अनुमोदन करते हैं। इनमें प्रथम छ: भेद अविशोधिकोटि के और अंतिम तीन भेद विशोधिकोटि के हैं। इन नौ कोटियों तथा उद्गम-उत्पादन-एषणा के दोषों से रहित शुद्ध आहार मुनि के लिए गाह्य है। इस प्रकार नवकोटि से युक्त विशुद्ध आहार करने वाले मुनि सच्चे श्रमणत्व की पर्यपासना करते हैं।24 वर्तमान में भिक्षा की नवकोटिक परिशुद्धता न्यून होती जा रही है। उसमें +
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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