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10... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन करते हुए भिक्षा मिलेगी तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं। ___7. गोचरी - गाय के अनुसार भ्रमण करते हुए भिक्षा मिलेगी तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।
8. पाटक - पाटक या मुहल्ला में मिली हुई भिक्षा ग्रहण करूंगा, अन्य स्थान की नहीं। इसमें एक या दो तीन मुहल्ला में प्रवेश करूँगा, ऐसा संकल्प किया जाता है।
9. नियंसण - अमुक घर के परिकर से लगी हुई भूमि पर मिली हुई भिक्षा स्वीकार करूँगा, घर में प्रवेश नहीं करूंगा।
10. भिक्षा परिमाण - एक या दो बार में जितना दिया जायेगा उतना ही ग्रहण करूँगा, अधिक नहीं।
11. दातृ ग्रास परिमाण - एक या दो दाता द्वारा दी गई भिक्षा अथवा दाता द्वारा दी जाने वाली भिक्षा में से इतने ग्रास ही ग्रहण करूँगा, ऐसा परिमाण करना।
12. पिण्डैषणा - पिण्ड रूप भोजन ही ग्रहण करूँगा। 13. पानैषणा - पीने योग्य पदार्थ ही ग्रहण करूँगा।
इसी प्रकार यवागू, पुग्गलया - चना, मसूर आदि धान्य, संसृष्ट - शाक, कुल्माष आदि से मिला हुआ, फलिहा – बीच में भात और उसके चारों ओर शाक रखा हो वैसा आहार, परिखा-बीच में अन्न और उसके चारों ओर व्यंजन रखा हो वैसा आहार, पुष्पोपहित-व्यंजनों के मध्य पुष्पावली के समान चावल रखे हों, शुद्धगोपहित - अन्नादि से रहित शाक-व्यंजन आदि। लेपकृत - जिससे हाथ खरड़े जाए वैसा भोजन, अलेपकृत- जिसके द्वारा हाथ लिप्त न हो वैसा भोजन मिलेगा तो ग्रहण करूँगा, अन्यथा नहीं। इस प्रकार के संकल्प पूर्वक आहार के लिए गमन करना चाहिए। भिक्षा गमन के प्रकार
जैनाचार्यों ने भिक्षाटन करने की छ: या आठ पद्धतियाँ बतलाई हैं जो क्षेत्र अभिग्रह से सम्बन्धित हैं। अभिग्रहधारी मुनि को इन कोटियों में से किसी एक के संकल्पपूर्वक आहार प्राप्त करना चाहिए। अष्टविध कोटियों का सामान्य वर्णन इस प्रकार है21
1. पेटा - पेटी की भाँति बीच के घरों को छोड़कर गाँव की चारों दिशाओं