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भिक्षा विधि का स्वरूप एवं उसके प्रकार ...9 भावतः - राजकुमारी दासत्व स्वीकार की हुई, हाथ-पैरों में बेड़ियाँ, मुंडित सिर, आँखों में अश्रुधारा और तीन दिन की भूखी हो - ऐसी कन्या के हाथ से भिक्षा लूंगा।
__भगवान महावीर द्वारा गृहीत यह अभिग्रह पाँच महीना और पच्चीस दिन बीतने पर चन्दनबाला के हाथ से पूर्ण हुआ।18
दिगम्बर परम्परानुसार भिक्षार्थी मुनि को निम्न संकल्पों या अभिग्रहों को धारण करके आहारार्थ जाना चाहिए।
1. गोचर प्रमाण - घरों की संख्या का परिमाण करके गमन करना। 2. दाता संकल्प - वृद्ध, युवा या बालक आदि के द्वारा प्रतिग्रह (पड़िगाहन) किया जायेगा, तभी उसके यहाँ रुकुंगा, अन्यथा नहीं। 3. भाजन संकल्पकांसा, पीतल आदि धातु के पात्र या मिट्टी के पात्र द्वारा भिक्षा दी जायेगी तो स्वीकार करूंगा, अन्यथा नहीं। 4. अशन संकल्प - चावल, सत्तू आदि विविध प्रकार की भोज्य सामग्री में से अमुक पदार्थ मिलेगा तो आहार ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।19
भगवती आराधना में भिक्षाटन सम्बन्धी विविध संकल्पों का निर्देश किया गया है। कुछ अभिग्रहों का स्वरूप निम्न प्रकार है20
1. गत्वा प्रत्यागता - जिस मार्ग से पहले गया था, उसी से लौटते हुए यदि भिक्षा मिलेगी तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।
2. ऋजु वीथि - सीधे मार्ग से गमन करते हुए भिक्षा मिलेगी तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।
3. गो मूत्रिका - गो मूत्रिका के आकार की भाँति बायीं ओर से दायीं तरफ के घरों और दायीं ओर से बायीं तरफ के घरों में जाते हए भिक्षा मिली तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।
4. पेटा - वस्त्र आदि रखने योग्य चौकोर सन्दूक की तरह बीच के घरों को छोड़कर चारों ओर समान श्रेणी में स्थित घरों में भ्रमण करते हुए भिक्षा मिलेगी तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।
5. शंबूकावर्त - शंख के आवर्त की तरह भिक्षाटन करते हुए आहार प्राप्त हुआ तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।
6. पतंगवीथी - पक्षियों की पंक्ति के समान अनियत क्रम से भ्रमण