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________________ 8... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन कहलाती है। इनमें जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट तीनों कोटि के अभिग्रहों का समावेश है अत: इन्हें प्रतिदिन ग्रहण किया जा सकता है। अभिग्रह सम्बन्धी अन्य चार प्रकार __ भिक्षा ग्रहण से सम्बन्धित विशिष्ट प्रतिज्ञा धारण करना अभिग्रह कहलाता है। मुख्य रूप से अभिग्रह चार प्रकार के होते हैं। अभिग्रह युक्त भिक्षा ग्रहण से अनन्त गुणा निर्जरा होती है इसलिए जब मुनि भिक्षाचर्या के लिए प्रस्थान करें तो अभिग्रह अवश्य लें। ___1. द्रव्य अभिग्रह - आज मैं अमुक लेपकृत राब आदि या अमुक अलेपकृत कठोल खाखरा आदि द्रव्य ही लूंगा अथवा कड़छी, भाला आदि अमुक वस्तु से देने पर ही लूंगा-ऐसा नियम करना द्रव्य अभिग्रह है। 2. क्षेत्र अभिग्रह – गत्वा आदि आठ प्रकार की गोचर भूमियों में से किसी एक के संकल्प पूर्वक भिक्षा लूंगा, अथवा गोचर भूमियों के प्रमाणानुसार घूमते हुए जो मिलेगा वही लूंगा, अथवा अमुक स्थान में खड़े होकर बहरायेगा तो ही लूंगा, अथवा अपने गाँव या दूसरे गाँव में इतने घरों में से जो मिलेगा वही लूंगा-ऐसा नियम करना क्षेत्र अभिग्रह है। 3. काल अभिग्रह - भिक्षाकाल से पूर्व, भिक्षाकाल के मध्य या भिक्षाकाल बीतने के पश्चात भिक्षार्थ जाने का नियम करना काल अभिग्रह है। 4. भाव अभिग्रह - अमुक अवस्था में भिक्षा लूंगा, जैसे अमुक थाली, तपेली आदि में लिया गया आहार ही लूंगा अथवा जो दाता गाता हुआ, रोता हुआ, बैठा हुआ, खड़ा हुआ, पीछे हटता हुआ, सम्मुख आता हुआ, आभूषणों से अलंकृत हुआ अथवा अनलंकृत हुआ देगा तो ही लूंगा। इनमें से किसी भी प्रकार के संकल्प पूर्वक आहार लेना भाव अभिग्रह है।17 उक्त चारों अभिग्रह तीर्थंकरों द्वारा भी आचरित होते हैं। जैसा कि भगवान महावीर ने कौशाम्बी में पौष मास के पहले दिन कुछ अभिग्रह धारण किये थे। द्रव्यतः - सूपड़े के कोने में उबले हुए उड़द हों। क्षेत्रतः - दाता का एक पैर देहली के भीतर और एक पैर देहली के बाहर हो। कालतः - भिक्षा का काल बीत चुका हो।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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