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भिक्षाचर्या का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अनुसंधान ... 215
अनगार धर्मामृत (5/37-38)
पिण्डनियुक्ति, (303)
पंचाशक प्रकरण
(13/48) प्रवचनसारोद्धार
(67/734)
4. संयोजना
3. परिमाण
1. अंगार
2. धूम
मूलाचार (476-477)
1. संयोजना
2. परिमाण
3. अंगार
4. धूम
1. संयोजना
2. परिमाण
3. अंगार
4. धूम
5. कारण
यदि जैन, हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं की पारस्परिक तुलना की जाए तो भिक्षा विधि के मौलिक बिन्दुओं को पुनः रेखांकित करना आवश्यक है।
* जैन ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर 'भिक्खु वा भिक्खुणी वा' तथा ‘निग्गन्थो वा निग्गन्थी वा' शब्द दृष्टिगोचर होता है। इससे यह स्पष्ट है कि इस संघ में साधु-साध्वियों के आचार सम्बन्धी विधि नियम लगभग समान हैं। यद्यपि लिंग विशेष की अपेक्षा कुछेक मर्यादाएँ पृथक-पृथक भी बताई गई हैं।
• जैन मुनि के भिक्षाचर्या की तुलना भ्रमर से की गई है। जिस प्रकार भ्रमर फूलों को किसी तरह की पीड़ा न देते हुए सभी जगह से थोड़ा-थोड़ा रस ग्रहण कर अपनी उदरपूर्ति कर लेता है उसी प्रकार जैन भिक्षु भी सभी घरों से थोड़ाथोड़ा आहार लेते हुए अपनी संयम यात्रा का निर्वाह करे, किसी एक गृहस्थ के आश्रित न रहें।
• यदि वर्षा हो रही हो, घना कोहरा पड़ रहा हो, आंधी चल रही हो ऐसे समय में भिक्षा हेतु गमन न करें ।
• शय्यातर का आहार किसी भी स्थिति में ग्रहण न करें ।
• साध्वी एकाकी गमन न करें, वह दो या तीन साध्वियों के साथ कहीं भी आ-जा सकती है।
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मुनि भिक्षाचर्या करते समय युग प्रमाण भूमि को देखते हुए धीरे-धीरे चलें, हंसना, बोलना आदि न करें। मौन एवं शान्त चित्त से इस चर्या का पालन करें।