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214... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
5. संहत
5. संव्यवहरण
5. छोटित
6. दायक
6. दायक
6. अपरिणत
7. उन्मिश्र7. उन्मिश्र
7. साधारण
5. संहत
5/1/30, 31 6. दायक
5/1/20,
39-42,43 7. उन्मिश्र 5/1/
5, 5/1/57 8. अपरिणत
5/1/37,
5/1/70 | 9. लिप्त 5/1/32 | 10. छर्दित
__5/1/28
8. अपरिणत
8. अपरिणत
8. दायक
9. लिप्त 10. छर्दित
9. लिप्त 10. छोटित
9. लिप्त 10. विमिश्र
• मूलाचार में संहृत दोष के स्थान पर संव्यवहरण तथा अनगार धर्मामृत में साधारण दोष का उल्लेख है।
• छर्दित दोष के स्थान पर दिगम्बर परम्परा में छोटित दोष का उल्लेख मिलता है।
• उन्मिश्र दोष के स्थान पर अनगार धर्मामृत में विमिश्र और मिश्र दोष का उल्लेख मिलता है।
. दशवकालिक सूत्र में एषणा के प्रायः दोष विकर्ण रूप से मिलते हैं। लिप्त नाम के दोष का उल्लेख नहीं है लेकिन पुरःकर्म और पश्चात कर्म से सम्बन्धित गाथाओं में उस दोष को समाहित किया जा सकता है।
* श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा मान्य मांडली दोषों में जो नामान्तर प्राप्त होता है वह निम्न रूप से दृष्टव्य है