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भिक्षाचर्या का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अनुसंधान ...213 क्रोधी, मानी, मायी और लोभी का उल्लेख है।
• निशीथ सूत्र में 15 दोषों के साथ संस्तव दोष का उल्लेख नहीं है लेकिन दूसरे उद्देश (2/37) में पुरः एवं पश्चात संस्तव करने वाले को प्रायश्चित का भागी बताया गया है। पिण्डनियुक्ति में संस्तव दोष के अन्तर्गत ही पूर्व स्तुति एवं पश्चात स्तुति का समावेश किया गया है, जबकि मूलाचार और अनगार धर्मामृत में पूर्व-पश्चात संस्तव दोष को दो अलग-अलग दोषों के रूप में माना गया है। अनगारधर्मामृत में प्राक्नुति और पश्चात्नुति तथा मूलाचार में पूर्व स्तुति और पश्चात स्तुति का उल्लेख है। शब्द भेद होने पर भी यहाँ अर्थ साम्य है।
• अनगार धर्मामृत में चिकित्सा दोष के स्थान पर वैद्यक दोष का उल्लेख भी मिलता है।
• दिगम्बर परम्परा में चूर्ण और योग को एक साथ माना है, जबकि पिण्डनियुक्ति में ये दोनों अलग-अलग दोष हैं।
. निशीथ सूत्र के तेरहवें उद्देशक में उत्पादना से सम्बन्धित 15 दोषों का उल्लेख एक स्थान पर मिलता है लेकिन वहाँ छेद सूत्रकार ने इनके लिए उत्पादना के दोषों का उल्लेख नहीं किया है। अन्तर्धान दोष को चूर्ण पिण्ड के अन्तर्गत न रखकर स्वतंत्र दोष माना है तथा मूलकर्म दोष का उल्लेख नहीं है।
* श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में एषणा के दस दोषों सम्बन्धी क्रम एवं नामों में किंचिद अंतर है। उसके. स्पष्टीकरणार्थ तुलना चार्ट निम्न प्रकार हैंपिण्डनियुक्ति
| अनगार धर्मामृत | दशवैकालिक पंचाशक (13/26)
5/28 प्रवचनसारोद्धार
(67/568) 1. शंकित 1. शंकित 1. शंकित 1. शंकित
5/1/44 2. मेक्षित 2. प्रक्षित 2. पिहित 2. म्रक्षित
5/1/32-36 3. निक्षिप्त 3. निक्षिप्त 3. प्रक्षित 3. निक्षिप्त
5/1/59-62 4. पिहित 4. पिहित 4. निक्षिप्त 4. पिहित
5/1/47
मूलाचार 462