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212... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
• मूलाचार में प्रामित्य दोष के स्थान पर प्रामृष्य तथा आच्छेद्य के स्थान पर अच्छेद्य दोष का उल्लेख है।
•
अनिसृष्ट दोष के स्थान पर अनगार धर्मामृत में निषिद्ध दोष का उल्लेख मिलता है।
• मूलाचार (४३१) और अनगार धर्मामृत (5 / 12) में उल्लिखित बलि दोष अतिरिक्त है। इसकी किसी के साथ तुलना नहीं की जा सकती ।
* श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में भिक्षाचर्या सम्बन्धी उत्पादन दोषों के क्रम एवं नामों में जो अंतर है, उसका तुलनात्मक चार्ट इस प्रकार हैनिशीथ पंचाशक
पिण्डनिर्युक्त
अनगार धर्मामृत
5/11
1. धात्री 2. दूती 3. निमित्त
4. आजीविका
5. वनीपक
6. चिकित्सा
7. क्रोध
8. मान
9. माया
10. लोभ 11. संस्तव
12. विद्या
13. मंत्र
14. चूर्ण
15. योग
16. मूलकर्म
(13/61-75)
(13/18-19) प्रवचन सारोद्धार (67/566-567)
1. धात्री
2. दूती
3. निमित्त
4. आजीविका
5. वनीपक
6. चिकित्सा
7. क्रोध
8. मान
9. माया
10. लोभ
11. विद्या
12. मंत्र
13. योग
14. चूर्ण
15. अन्तर्धान पिण्ड 16. मूलकर्म
मूलाचार
445
1. धात्री
2. दूत
3. निमित्त
4. आजीव
5. वनीपक
6. चिकित्सा
7. क्रोधी
8. मानी
9. मायी
10. लोभी
11. पूर्व स्तुति
12. पश्चात स्तुति
13. विद्या
14. मंत्र
15. चूर्णयोग
16. मूलकर्म
1. धात्री
2. दूत
3. निमित्त
4. वनीपकोक्ति
5. आजीव
6. क्रोध
7. मान
8. माया
9. लोभी
10. प्राक्नुति
11. अनुनुति
12. वैद्यक
13. विद्या
14. मंत्र
15. चूर्ण
16. वश/मूलकर्म
इस चार्ट के आधार पर कुछ तथ्य निम्न प्रकार कहे जा सकते हैं• मूलाचार में दूती दोष के स्थान पर दूत दोष का उल्लेख मिलता है।
• मूलाचार में क्रोधपिण्ड आदि के स्थान पर व्यक्ति का विशेषण करके