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________________ 216... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन • राजकुल आदि निंदित कुलों में भिक्षार्थ न जाएं। • उद्गम आदि 42 दोषों को टालते हए आहार ग्रहण करें। • वेदना, वैयावृत्य आदि छह कारणों के उपस्थित होने पर दिन में एक बार ही आहार ग्रहण करें। • जिस गाँव में भोजन का जो समय हो, उसी समय भिक्षैषणा के लिए प्रस्थान करें। • मुनि नवकोटि से परिशुद्ध आहार ग्रहण करें। इस प्रकार श्वेताम्बर परम्परागत भिक्षा विषयक अनेक नियमोपनियम साधु-साध्वी दोनों के लिए समान रूप से कहे गये हैं। * यदि श्वेताम्बर मान्य भिक्षा विधि एवं तत्सम्बन्धी नियमों की तुलना दिगम्बर परम्परा मान्य भिक्षा विधि के साथ की जाए तो कुछ नियमों में पूर्ण समानता देखी जाती है जैसे कि 1. श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों वर्ग के साधु-साध्वी ईर्यासमिति का पालन करते हुए भिक्षाटन करते हैं। 2. भिक्षाचर्या करते समय लगने वाले बयालीस दोषों का परिहार करते हैं। 3. आहार करने से पूर्व एवं आहार करने के पश्चात अर्हत वन्दना करते हैं। 4. आहार पूर्ण होने के बाद भिन्न-भिन्न विधिपूर्वक मुख-हाथ आदि की शुद्धि करते हैं। * इन दोनों परम्पराओं में कुछ नियमों को लेकर असमानताएँ भी परिलक्षित होती है जैसे कि 1. श्वेताम्बर मुनि उपाश्रय में आहार करते हैं और दिगम्बर मुनि गृहस्थ के घर पर आहार करते हैं। 2. श्वेताम्बर मुनि बैठकर आहार करते हैं और दिगम्बर मुनि खड़े-खड़े आहार करते हैं। 3. श्वेताम्बर मुनि पात्रधारी होते हैं और दिगम्बर मुनि करपात्री होते हैं। 4. श्वेताम्बर मुनि अपवादत: एक से अधिक बार भी आहार ग्रहण करते हैं जबकि दिगम्बर मुनि एक बार ही आहार लेते हैं। 5. श्वेताम्बर मुनि नाना घरों से लाया हुआ आहार ग्रहण करते हैं जबकि दिगम्बर मुनि प्राय: एक घर का ही आहार करते हैं।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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