SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 202... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन प्रश्नव्याकरणसूत्र में मूलकर्म दोष की चर्चा की गई है। यह दोष उत्पादना से सम्बन्धित है।26 निशीथसूत्र में मुलकर्म को छोड़कर शेष पन्द्रह उत्पादना सम्बन्धी दोष कहे गये हैं जो निम्न हैं -1. धात्री 2. दूती 3. निमित्त 4. आजीविका 5. वनीपक 6. चिकित्सा 7. क्रोध 8. मान 9. माया 10. लोभ 11. विद्या 12. मंत्र 13. चूर्ण 14. योग 15. पूर्व पश्चात्संस्तव दोष।27 इसी क्रम में दशवैकालिक सूत्र में तेरह प्रकार के दोषों का उल्लेख निम्न प्रकार हैं- 1. उद्भिन्न 2. मालापहृत 3. अध्यवपूरक 4. शंकित 5. मेक्षित 6. निखिप्त 7. विहित 8. संहत 9. दायक 10. उन्मिश्र 11. अपरिणत 12. लिप्त 13. छर्दित।28 उत्तराध्ययनसूत्र में कारणातिक्रान्त दोष का उल्लेख है29 जबकि पिण्डनियुक्ति, पिण्डविशुद्धिप्रकरण, पंचाशकप्रकरण, पंचवस्तुक, प्रवचन सारोद्धार आदि में आहार सम्बन्धी 47 दोषों की पूर्ण चर्चा है। उपरोक्त ग्रन्थों में भी यह वर्णन सर्वप्रथम पिण्डनियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने किया है तथा इससे परवर्ती श्वेताम्बर आचार्यों ने इसी ग्रन्थ का अनुकरण करते हुए सैंतालिस दोषों पर प्रकाश डाला है। अत: श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में तद्विषयक कोई अन्तर नहीं है, केवल क्रमिक दृष्टि से किंचिद भेद हैं। यदि दिगम्बर साहित्य के परिप्रेक्ष्य में इन दोषों का तुलनात्मक विवेचन किया जाए तो नाम, क्रम एवं संख्यादि में मतभेद दिखता है। सामान्यतया दिगम्बर परम्परा में आहार विषयक 46 दोष स्वीकारे गये हैं। तदनुसार जो आहार 46 दोषों से, अध:कर्म से एवं 14 मलों से रहित होता है वही साधुओं के लिए ग्राह्य माना गया है। दिगम्बर मुनि 46 दोष रहित आहार भी बत्तीस अन्तरायों को टालकर स्वीकार करते हैं। इनमें ‘कारण' नामक दोष को छोड़कर शेष दोष लगभग श्वेताम्बर के समान ही माने गये हैं। सोलह उद्गम दोषों की अपेक्षा- दिगम्बर परम्परा के अनगार धर्मामृत में उद्गम सम्बन्धी सोलह दोष निम्नोक्त बताये गये हैं 1. उद्दिष्ट औद्देशिक 2. साधिक 3. पूति 4. मिश्र 5. प्राभृतक 6. बलि 7. न्यस्त 8. प्रादुष्कृत 9. क्रीत 10. प्रामित्य 11. परिवर्तित 12. निषिद्ध 13. अभिहत 14. उद्भिन्न 15. आच्छेद्य और 16. आरोह।30 मूलाचार में उद्गम सम्बन्धी सोलह दोषों के नाम इस प्रकार हैं
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy