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भिक्षाचर्या का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अनुसंधान ...203 1. औद्देशिक 2. अध्यधि 3. पूति 4. मिश्र 5. स्थापित 6. बलि 7. प्रावर्तित 8. प्रादुष्कार 9. क्रीत 10. प्रामृष्य 11. परिवर्तक 12. अभिघट 13. उद्भिन्न 14. मालारोह 15. अभेद्य और 16. अनिसृष्ट।31
यदि श्वेताम्बर परम्परा में मान्य 47 दोषों की तुलना दिगम्बर परम्परा में मान्य 46 दोषों के साथ की जाए तो इनमें परस्पर नाम क्रम एवं संख्यादि की अपेक्षा मतभेद हैं
नाम वैभिन्य- श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराओं की दृष्टि से उद्गम दोषों के नामों को लेकर विचार किया जाए तो
• पिण्डनियुक्ति (श्वेताम्बर) में उद्गम का पहला दोष ‘आधाकर्म' है जबकि मूलाचार और अनगार धर्मामृत में पहला दोष 'औद्देशिक' नाम का है।
• पिण्डनियुक्ति में उद्गम का दूसरा दोष औद्देशिक' है किन्तु अनगार धर्मामृत में इसके स्थान पर ‘साधिक' नाम का दोष है और मूलाचार में 'अध्यधि' नाम का दोष कहा गया है। अध्यधि-आहारार्थ आते हुए मुनियों को देखकर पकते हुए चावलों में और चावल मिला देना अध्यधि दोष कहलाता है।
. पिण्डनियुक्ति में पांचवाँ दोष ‘स्थापना' नाम का है, किन्तु अनगार धर्मामृत में इसके स्थान पर 'प्राभृतक' और मूलाचार में 'स्थापित' नामक दोष का वर्णन है।
• पिण्डनियुक्ति में छठवां दोष 'प्राभृतिका' नाम से है, वहाँ अनगार धर्मामृत एवं मूलाचार में 'बलि' दोष का उल्लेख है। स्थापना और बलि दोनों समानार्थक हैं।
• पिण्डनियुक्ति में सातवाँ दोष 'प्रादुष्करण' नामक है, वहाँ अनगार धर्मामृत में 'न्यस्त' और मूलाचार में 'प्रावर्तित' नाम का दोष कहा गया है। - • पिण्डनियुक्ति में बारहवाँ 'उद्भिन्न' नाम का दोष है जबकि अनगार धर्मामृत में बारहवाँ निषिद्ध' नाम का तथा मूलाचार में 'अभिघट' नाम का दोष उल्लेखित है। __क्रम वैभिन्य- उद्गम सम्बन्धी सोलह प्रकारों में क्रम की अपेक्षा मनन किया जाए तो श्वेताम्बर परम्परा मान्य पिण्डनियुक्ति में औद्देशिक नामक दूसरा दोष मूलाचार आदि में पहले स्थान पर है। इसी तरह श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार सातवें प्रादुष्करण नामक दोष को दिगम्बर परम्परा में आठवाँ स्थान दिया गया