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198... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन सम्बन्ध में उल्लिखित है। यहाँ भिक्षा का अर्थ याचित आहार से है। जैन मत में भिक्षा द्वारा जीवन निर्वाह करने वाले साधकों को भिक्षु कहा गया है। इस प्रकार 'भिक्षु' शब्द भिक्षाग्राही के अर्थ को प्रकट करता है।
ज्ञाताधर्मकथासूत्र में भिक्षा शब्द का प्रयोग सचित्त भिक्षा के अर्थ में हुआ है। निर्दोष आहार ग्रहण करना अचित्त भिक्षा कहलाती है। इस प्रकार सचित्त शिष्यादि एवं अचित्त आहारादि दोनों अर्थों में भिक्षा शब्द प्रयुक्त है।
यदि भिक्षाचर्या की मूल विधि का प्रामाणिक आधार ढूंढा जाए तो आचारांगसूत्र एवं दशवैकालिकसूत्र में उसका प्राचीन स्वरूप दृष्टिगत होता है। इनमें भिक्षाचर्या के अनेकविध नियमोपनियमों एवं मर्यादाओं का भी वर्णन है। उक्त दोनों ग्रन्थ भिक्षाचर्या का सम्यक प्रतिपादन करने में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन ग्रन्थों में भिक्षाचर्या के समस्त पहलूओं पर विचार करते हुए मुनि जीवन की दैनिक चर्याओं का प्रतिपादन किया गया है।
पूर्वकाल मे आचारांगसूत्र का 'शस्त्र परिज्ञा' नामक प्रथम अध्ययन और परवर्तीकाल में दशवैकालिकसूत्र के प्रारम्भिक चार अध्ययन साधु-साध्वी के दैनिक स्वाध्याय में अनिवार्य माने जाते रहे हैं, क्योंकि इन अध्ययनों में मुनि की जीवन चर्या के साथ-साथ भिक्षाचर्या के नियम भी उल्लेखित हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि जैनागमों में भिक्षाचर्या विधि स्पष्टतया वर्णित है।
भिक्षाविधि का सामान्य वर्णन स्थानांग, भगवती, प्रश्नव्याकरण, निशीथ आदि सूत्रों में भी किया गया है। यदि भिक्षा सम्बन्धी 42 अथवा 47 दोषों के सम्बन्ध में विचार किया जाए तो आगम साहित्य में भिक्षाचर्या के 42 दोष एक साथ नहीं मिलते हैं। वहाँ सभी दोषों के नाम मूलकर्म को छोड़कर विकीर्ण रूप से मिलते हैं। कुछ अतिरिक्त दोषों का उल्लेख भी वहाँ प्राप्त होता है। स्पष्टीकरण के लिए प्रकीर्ण रूप से प्राप्त उद्गम दोषों के नाम इस प्रकार हैंआचार चूला में आधाकर्म, औद्देशिक, मिश्रजात, क्रीत, प्रामित्य, आच्छेद्य, अनिसृष्ट और अभिहत दोषा सूत्रकृतांगसूत्र में औद्देशिक, आधाकर्म, क्रीत, प्रामित्य, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, अभिहत और पूति।' स्थानांगसूत्र में आधाकर्मिक, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यव, पूतिक, क्रीत, प्रामित्य, आच्छेद्य, अनिसृष्ट और अभिहता भगवतीसूत्र में आधाकर्म, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवतर पूतिक, क्रीत, प्रामित्य, आच्छेद्य, अनिसृष्ट और अभिहता प्रश्नव्याकरणसूत्र