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________________ 194... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन के द्वारा चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दें। फिर कमण्डल लेकर जिनमन्दिर में आयें। वहाँ जिन प्रतिमा या गुरु के समक्ष खड़े होकर पूर्ववत कायोत्सर्ग करें और ‘लघु सिद्ध भक्ति' बोलें। तदनन्तर पुनः विज्ञापन पूर्वक कायोत्सर्ग करें एवं पूर्ववत ‘लघु योग भक्ति' का पाठ बोलकर दूसरे दिन 10 बजे तक के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दें। तदनन्तर भोजन में लगे दोषों का प्रतिक्रमण करें। उसके बाद मध्याह्न काल की दो घड़ी बीत जाने पर पूर्वाह्न की तरह विधिपूर्वक स्वाध्याय करें।48 प्रकृति ने हर कार्य की एक नियम विधि नियुक्त की है। उसी विधिपूर्वक करने पर वह कार्य ऐच्छिक सफलता प्रदान करता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर जैनाचार्यों ने आहार चर्या सम्बन्धी अनेकशः विधि एवं उपविधियों का निरूपण किया है। इसके माध्यम से मुनि शुद्ध आहार की प्राप्ति के साथ महाव्रतों का भी विशुद्ध परिपालन कर सकता है। सन्दर्भ सूची 1. पंचवस्तुक, 287-289 2. ओघनियुक्ति भाष्य, 228 3. यतिदिनचर्या, 172-174 उद्धृत-धर्मसंग्रह, भा.3, पृ. 101 4. वही, 175-176 पृ. 110 5. पंचवस्तुक, गा. 297 6. धर्मसंग्रह, भा. 3, पृ. 100 7. मूलाचार, 5/318 की टीका 8. भगवती आराधना,1200 की टीका 9. मूलाचार, 5/318 की टीका 10. पंचवस्तुक, 311-317 11. पंचवस्तुक, 318-319 12. (क) ओघनियुक्ति, 512 (ख) पंचवस्तुक, 320-321, 326 13. पंचवस्तुक, 322-324 14. वही, 327-330 15. (क) पंचवस्तुक, 331 (ख) ओघनियुक्ति, 516
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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