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भिक्षाचर्या की विधि एवं उपविधियाँ ...195
16. (क) पंचवस्तुक, 335-336 (ख) ओघनिर्युक्ति, 519 17. दशवैकालिकसूत्र, 5/1/90 18. पंचवस्तुक, 337-338 19. वही, 340
20. (क) पंचवस्तुक, 341
(ख) ओघनियुक्ति भाष्य, 374 21. (क) दशवैकालिकसूत्र, 5/1/92
(ख) कुछ ग्रन्थों मे 'जइ मे अणुग्गहं कुज्जा' इस पद से शुरू होने वाली गाथा बोलने का उल्लेख है किन्तु इस गाथा को बताने वाला कोई ग्रन्थ लगभग उपलब्ध नहीं है। यद्यपि दशवैकालिक सूत्र के पाँचवें अध्ययन के प्रथम उद्देशक की 94वीं गाथा के उत्तरार्ध पहले चरण में ये पद देखने को मिलते हैं तथा वर्तमान में इसके स्थान पर 'अहो जिणेहिं असावज्जा' इस गाथा का चिंतन किया जाता है।
22. पंचवस्तुक, 342
23. दशवैकालिकसूत्र, 5/1/93-94
24. (क) पंचवस्तुक, 351-355
(ख) ओघनिर्युक्ति, 522, 525,548,
25. मंडलि भायण भोयण, गहणं सोही उ कारणुव्वरिए । भोयण विही उ एसो, भणिओ तेलुक्कदंसीहिं ॥
ओघनियुक्ति, 566
26. पंचवस्तुक, 356-357
27. वही, 360
28. ओघनियुक्ति भाष्य, 298
29. वही, 296-297
30. (क) ओघनियुक्ति भाष्य, 299
(ख) पंचवस्तुक, 261
31. ठाण दिसि पगासणया, भायण पक्खेवणे य गुरुभावे । सत्तविहो आलोको, सयावि जयणा सुविहियाणं ॥
32. मूलाचार, 1/34 की टीका
33. (क) मूलाचार, 1/34 की टीका
(ख) अनगार धर्मामृत, 9 / 94
ओघनियुक्ति, 550