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भिक्षाचर्या की विधि एवं उपविधियाँ ... 193
अनुकूलता हो तो स्वाध्याय करते हैं तथा समय हो जाने पर मंडली के साथ बैठकर आहार करते हैं। इसके अतिरिक्त विस्मृत दोषों की शुद्धि हेतु दूसरी बार कायोत्सर्ग करना, देववन्दन करना, मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करना आदि अनुष्ठान नहीं किये जाते हैं। इस परम्परा में स्वाध्याय निमित्त निश्चित सूत्र पाठ का विधान भी नहीं है जबकि मूर्तिपूजक परम्परा में दशवैकालिक सूत्र की पाँच या सतरह गाथा का स्वाध्याय करना अनिवार्य माना गया है।
दिगम्बर परम्परा में आहार विधि का निम्न स्वरूप वर्णित है -
आहार से पूर्व करने योग्य विधि- जब मध्याह्न काल की दो घड़ी (48 मिनिट) शेष रहे तब मुनि स्वाध्याय को समाप्त करें। फिर मल-मूत्र की शंका से निवृत्त होना हो तो वसति से दूर जाकर शौच क्रिया करें। तदनन्तर हाथ-पैर आदि की शुद्धि करें। फिर पीछी और कमण्डलु लेकर मन्दिर जायें तथा मध्याह्न कालीन देववन्दन (सामायिक) करें। यदि आचार्य समीप हों तो उनके सम्मुख ‘आचार्य भक्ति' का पाठ बोलकर वन्दन करें। उसके पश्चात 'लघु सिद्ध भक्ति' और 'लघु योग भक्ति' ये दोनों पाठ बोलकर आचार्य के मुख से प्रत्याख्यान ग्रहण करें। यदि आचार्य का सान्निध्य न हो तो पूर्वोक्त सर्व विधि जिनमन्दिर में करें तथा प्रत्याख्यान स्वयं ही ग्रहण करें।
यहाँ लघुसिद्ध भक्ति और लघुयोग भक्ति ये दोनों पाठ पहले दिन किए गए प्रत्याख्यान की समाप्ति के निमित्त बोले जाते हैं। इतनी विधि करने के बाद दाहिने हाथ में पीछी, कमण्डलु और बायाँ हाथ कंधे पर रखते हुए आहार के लिए निकलें। अभिग्रह पूर्ण होने पर आहार प्रारम्भ करें।
आहार के समय की विधि - सर्वप्रथम गृहस्थ के द्वारा नवधा भक्ति की जाये। उसके बाद आहारार्थी मुनि हाथ धोयें। तत्पश्चात 'अथ चतुर्विधाहार निष्ठापन .... सिद्ध भक्ति कायोत्सर्गं कुर्वेऽहं पाठ बोलकर कायोत्सर्ग करें। फिर आहार प्रारंभ करने के लिए 'लघु सिद्ध भक्ति' का पाठ बोलें। तदनन्तर दोनों हाथों को नाभि से ऊपर रखते हुए आहार करने की मुद्रा में स्थित होकर खड़ेखड़े ही आहार ग्रहण करें।
आहार के बाद की विधि - आहार पूर्ण हो जाने के बाद उकडु बैठकर मुख एवं हाथ-पैर आदि की शुद्धि करें। फिर श्रावक के हाथ से पिच्छिका ग्रहण कर आहार का प्रत्याख्यान करने हेतु 'लघु सिद्ध भक्ति' का पाठ बोलें। इस पाठ