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भिक्षाचर्या की विधि एवं उपविधियाँ ...181 आहारार्थी मुनि के प्रकार
ओघनियुक्ति एवं पंचवस्तुक आदि में भोजन करने वाले मुनियों के दो प्रकार बताये गये हैं- मांडली भोजी और एकल भोजी अथवा मांडली भोजी और
अमांडली भोजी।24 - ओघनियुक्ति में मांडली- अमांडली शब्दों का प्रयोग है तथा पंचवस्तुक में मांडली एवं एकल भोजी शब्द का उल्लेख है।
(i) मांडली भोजी – मंडली (समूह) के साथ भोजन करने वाले साधु। मंडली भोजी मुनि का सामान्य नियम यह होता है कि जब तक मंडली स्थान पर आहार इच्छुक सभी साधु एकत्रित न हो जाएं तब तक प्रतीक्षा करें तथा सर्व मुनियों के उपस्थित होने पर आहार शुरु करें। ____(ii) एकलभोजी- अकेला भोजन करने वाला साधु। पूर्वकालिक सामाचारी के अनुसार आगाढ़ योगवाही (गणियोग करने वाला), शैक्ष, वृद्ध, बाल और प्राघूर्णक (अतिथि) मंडली में भोजन नहीं करते हैं। इन्हें भिक्षा आने के साथ ही पर्याप्त आहार परोस दिया जाता है। पूर्वाचार्यों के अभिमत से प्रायश्चित्तवाही, असाम्भोगिक (असमान सामाचारी वाले) और आत्म लब्धिक भी मंडली में भोजन नहीं कर सकते हैं।
वर्तमान में मांडली- अमांडली भोजी का भेद लगभग समाप्त हो गया है। आज तो एकाकी विचरण करने वाला एकलभोजी कहलाता है। शेष सर्व बालवृद्ध आदि समूह में ही भोजन करते हैं। इतना अवश्य है कि वृद्ध या रोगी मुनि यदि अपने स्थान से उठ नहीं सकते हों तो उन्हें वहीं पर आहार करवा देते हैं। गुरु आदि शासन कार्यों में व्यस्त हों तो उनके लिए आहार रख दिया जाता है तथा बाल-वृद्ध आदि को उनकी अभिरुचि के अनुरूप आहार परोसने का ध्यान रख लेते हैं। इस तरह सभी साधु एक स्थान पर बैठकर ही भोजन करते हैं। एकल भोजी की आहार विधि
प्राचीन परम्परानुसार एकल भोजी की आहार विधि निम्न है
सर्वप्रथम एकलभोजी मुनि आहारादि लाने के पश्चात अन्य साधुओं को आमंत्रित करने हेतु गुर्वानुमति प्राप्त करें। उसके बाद दीक्षा पर्याय के क्रम से प्राघूर्णक, तपस्वी, ग्लान और शैक्ष (नवदीक्षित) इन सभी को स्वगृहीत आहार