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182... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
में से कुछ लाभ देने का निमंत्रण दें। उस समय प्राघूर्णक आदि किसी मुनि की आहार सम्बन्धी इच्छा हो जाये तो एकलभोजी साधु पुन: गुरु के समीप आकर उनकी इच्छा को व्यक्त करें। उसके पश्चात गुरु स्वयं प्राघूर्णक आदि को यथेच्छित आहार दें। शेष बचे हुए आहार को एकल भोजी गुर्वाज्ञा पूर्वक स्वयं ग्रहण करें। यदि गुरु के पास समय का अभाव हो तो उनकी अनुमति पूर्वक वह स्वयं प्राघूर्णक आदि मुनियों को आहार दें।
इस विधि का रहस्य यह है कि भिक्षाग्राही मुनि द्वारा सर्व साधुओं को समान रूप से निमन्त्रित करने के उपरान्त कोई साधु आहार न भी लें परन्तु निमंत्रण काल में परिणाम विशुद्धि होने से निर्जरा जरूर होती है। यदि परिणाम विशुद्धि न हो तो प्राघूर्णक मुनि आदि आहार कर भी लें तब भी निर्जरा नहीं होती है इसलिए निमंत्रण विधि उद्देश्य पूर्ण है। मांडली भोजी की आहार विधि
कोई मांडली भोजी साधु भिक्षार्थ गया हुआ हो तो वह जब तक न आये तब तक मंडली में भोजन करने वाले मुनि एकाग्रचित्त होकर स्वाध्याय करें। यहाँ स्वाध्याय में दशवैकालिकसूत्र के प्रारम्भिक तीन अध्ययनों का पुनरावर्तन अवश्य करें। भिक्षार्थ गया हुआ साधु भी वापस लौटकर मुहूर्त भर स्वाध्याय करे। उसके बाद आहार इच्छुक सभी साधु गुरु से अनुमति मांगें। गुरु आहार की आज्ञा प्रदान करें। तदनन्तर सर्व साधु भोजन मंडली में एकत्रित होकर नमस्कार मंत्र का स्मरण करें। फिर अग्रलिखित विधिपूर्वक भोजन ग्रहण करें। आहार करने की विधि
ओघनियुक्ति में आहार विधि से सम्बन्धित पाँच नियम बतलाए गये हैं जो निम्नोक्त हैं 25____ 1. मंडली- आहार करते समय गुरु या ज्येष्ठ मुनि पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें, एक साधु-गुरु द्वारा दिये जा रहे आहार को परोसने हेतु गुरु के सामने बैठे। अन्य साधु गुरु के आगे-पीछे न बैठकर उनसे ईशान अथवा आग्नेय दिशा में बैठें। आहार गुरु के सामने बैठकर करना चाहिए क्योंकि वे कुपथ्य आदि से सरलता पूर्वक बचा सकते हैं।
2. भाजन- आहार करने का पात्र चौड़े मुख वाला हो, संकीर्ण मुख वाला न हो। चौड़े मुख वाले पात्र में मक्खी-मच्छर आदि जीवों को भलीभाँति देखा जा