________________
भिक्षाचर्या की विधि एवं उपविधियाँ ... 175
सर्वप्रथम गाँव के बाहर रुककर किसी से भिक्षा का समय पूछे। यदि समय हो गया हो तो उसी समय पाँवों का प्रमार्जन करें। फिर पात्रों का निरीक्षण करके गाँव में प्रवेश करें। यदि भिक्षा काल में देरी हो तो उतना विलम्ब करके प्रवेश करें। गाँव में प्रविष्ट होकर यह जानकारी प्राप्त करें कि यहाँ कोई साधु हैं या नहीं? यदि उस गाँव में साधु हों तो उनके स्थान पर जायें। यदि समान सामाचारी वाले साधु हों तो उस वसति में लिए हुए उपकरण सहित प्रवेश करें और वहाँ आचार्य आदि हों तो द्वादशावर्त्त वन्दन करें। यदि भिन्न सामाचारी वाले हों तो उपकरण बाहर रखकर उपाश्रय में प्रवेश करें और वन्दन करें। यदि शिथिलाचारी हों तो बाहर खड़े ही सुखपृच्छा करें। स्वयं के आने का कारण बतायें और गृहस्थ आदि के घरों की जानकारी लें। रूके हुए साधु भी विवेक पूर्वक घरों का संकेत करें। " दिगम्बर मुनि की भिक्षा गमन विधि
आचार्य वट्टकेर ने दिगम्बर मुनि की भिक्षा गमन विधि का उल्लेख करते हुए कहा है- जब सूर्योदय से दो घड़ी जितना काल पूर्ण हो जाए तब मुनि देववन्दन करें, फिर श्रुत भक्ति और गुरु भक्ति पूर्वक स्वाध्याय स्वीकार करके शास्त्र - ग्रन्थों की वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा आदि करें तथा मध्याह्न काल से दो घड़ी पूर्व ही श्रुत भक्ति पूर्वक स्वाध्याय समाप्त कर दें।
तदनन्तर वसति से दूर जाकर पाँच समिति पूर्वक मल-मूत्र आदि का विसर्जन करें और हाथ-पाँवादि का प्रक्षालन करें। उसके बाद मध्याह्न काल की अवशेष दो घड़ी में देववन्दन और सामायिक करें। फिर योग्य वेला ज्ञातकर कमण्डलू और पिच्छिका लेते हुए आहार के लिए प्रस्थान करें।
विजयोदया टीका में भी यही कहा गया है कि मुनि भिक्षा और क्षुधा काल को जानकर, संकल्प पूर्वक गाँव- नगरादि में प्रवेश करें । भिक्षार्थ गमन करते हुए स्वयं का आगमन बतलाने के लिए याचना या अव्यक्त शब्द न करें, केवल बिजली की तरह अपना शरीर मात्र दिखलायें । "
उस समय चलते हुए न अधिक जल्दी-जल्दी, न अधिक धीरे-धीरे और न ही विलम्ब करते हुए चलें। धनी और निर्धन आदि के घरों का भेद भाव न करें। मार्ग में किसी से बात न करें और न ही ठहरें । नीच कुलों के घरों में प्रवेश न करें, शुद्ध कुलों में भी सूतक, पातक आदि के घरों में न जाएं। द्वारपाल आदि रोके तो प्रवेश न करें, भिक्षा लेते समय स्त्रियों की ओर आसक्ति पूर्वक न देखें । "