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________________ 174... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन यतिदिनचर्या में कहा गया है कि जब भिक्षा का समय हो जाये तब गुरु को वन्दन कर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करे। उसके बाद एक खमासमण पूर्वक 'हे भगवन्! प्रतिलेखना के स्थान पर पात्रों को रखू?' इस तरह गुर्वानुमति पूर्वक पात्रोपकरण का प्रतिलेखन करें। फिर पात्र को झोली में रखकर गुरु के समक्ष उपयोग क्रिया करें। इस वर्णन से स्पष्ट होता है कि उपयोग की मूल विधि के सम्बन्ध में सभी ग्रन्थकार एकमत हैं केवल उससे पूर्व की प्रक्रिया में सामाचारी भेद है। वर्तमान सामाचारी के अनुसार बाल-ग्लान-वृद्ध आदि सभी साधुओं के अनुग्रह (भक्ति) के लिए प्रभात काल में ही उपयोग का कायोत्सर्ग कर लेते हैं। उत्सर्गत: यह विधि अपराह्न काल में भिक्षागमन से पूर्व की जानी चाहिए, अपवादत: यह विधि प्रात:काल में करने का भी निर्देश हैं क्योंकि रोगी आदि की सेवा के लिए प्रात: भिक्षार्थ जाना पड़ सकता है। भिक्षा गमन विधि यतिदिनचर्या में भिक्षा गमन विधि को उपदर्शित करते हुए कहा गया है कि सर्वप्रथम गुरु के सम्मुख पूर्व निर्दिष्ट उपयोग क्रिया करें। उसके बाद गौतम स्वामी का स्मरण करते हुए धीरे से दंडे को हाथ में लें। पात्र पहले से ही हाथ में लिए हुए होते हैं अत: डंडे को लेकर उपाश्रय के द्वार के समीप खड़े हो जायें। फिर अंगुलियों द्वारा नासिका से बह रही वायु का निरीक्षण करें। जिस नासिका में से वायु बह रहा हो उस तरफ का कदम उठाते हुए भिक्षा हेतु प्रस्थान करें। जब तक आहार प्राप्त न हो तब तक डंडे को भूमि से ऊपर रखें यानी भूमि पर टिकाए नहीं। __ आचार्य हरिभद्रसूरि के अनुसार भिक्षा इच्छुक मुनि आहार आदि के प्रति अनासक्त भाव रखते हुए, आहार सम्बन्धी बियालीस दोषों को टालते हुए, द्रव्यादि चार अभिग्रह को धारण करते हुए और एक मात्र मोक्ष की साधना का लक्ष्य रखते हुए भिक्षा हेतु परिभ्रमण करें। भिक्षाटन करते समय शंकित आदि दोष न लग जाये, उसका पूरा उपयोग रखें। इस तरह सर्वसंपत्करी भिक्षा ग्रहण करके वसति में प्रवेश करें। ___धर्मसंग्रह के अनुसार यदि मुनि निकटवर्ती दूसरे गाँव में भिक्षा हेतु जाये तो वहाँ निम्न विधि का पालन करें
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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