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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...161 क्रीतं यत् साध्वर्थं मूल्येन परिगृहीतम् ।। (ख) पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 35 (ग) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ 403 83. क्रयणं-कीतं...साध्वादिनिमित्तमिति गम्यते, तेन कृतं-निवर्तितं क्रीतकृतं । दशवैकालिक हारिभद्रीय टीका, पत्र 116 84. (क) आचारचूला, 1/29 (ख) सूयगडो, 1/9/14 (ग) स्थानांगसूत्र, 9/62 (घ) भगवतीसूत्र, 9/177 (ङ) दशवैकालिकसूत्र, 3/2 85. बृहत्कल्पभाष्य, 4201-4202 की टीका, पृ. 1141 86. पिण्डनियुक्ति, 308 87. वही, 312 88. पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 97 89. (क) पिण्डनियुक्ति, 309 (ख) निशीथ भाष्य, 4477 90. भगवई (अंगसुत्ताणि-2), 5/139-145 91. समणट्ठा उच्छिंदिय, जं देयं देइ तमिह पामिच्चं। (क) पिण्डविशुद्धि प्रकरण, 44 (ख) पिण्डनियुक्ति टीका पृ. 35 प्रामीत्यं साध्वर्थमुच्छिद्य दान लक्षणम्। (ग) दशवैकालिक हारिभद्रीय टीका, पृ. 174 यत्साधुनिमित्तमुच्छिन्नं गृह्यते तदपमित्यं प्रामित्यकं। (घ) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 404 92. मूलाचार टीका, पृ. 342 93. वही, पृ. 342 94. पिण्डनियुक्ति, 316 95. पल्लट्टिय जं दव्वं, तदन्नदव्वेहिं देइ साहूणं। ..तं परियट्टियमेत्थं। (क) पिण्डविशुद्धि प्रकरण, 45
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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