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________________ 162... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन परिवर्तितं यत् साधुनिमित्तं कृतपरावर्तम्। (ख) पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 35 (ग) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 405 96. पिण्डनियुक्ति, गा. 323 की टीका, पृ. 100 97. वही, पृ. 100 98. पिण्डनियुक्ति, 327 99. अभिहडं जं अभिमुहमाणीतं उवस्सए आणेऊण दिण्णं। (क) दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ.60 अभिहतं-यत् साधुदानाय स्वग्रामात् परग्रामाद्वा समानीतम्। (ख) पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 35 100. सूयगडो, 1/9/14 101. प्रवचनसारोद्धार, द्वार 67/पृ. 273 102. छण्ण णिसीह भण्णति, पगडं पुण होति णोणिसीहं ति। जीतकल्पभाष्य, 1250 103. प्रवचनसारोद्धार टीका, 140-141 104. पिण्डनियुक्ति, 334-35 105. पिण्डनियुक्ति-सानुवाद, पृ. 80-81 106. मूलाचार, 438-440 टीका, पृ. 343 107. जउछगणाइविलित्तं, उम्भिंदिय देइ जं तमुब्भिन्न (क) पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 48 पिहिदं लंछिदयं वा, ओसह घिद सक्करादि जं दव्वं। उब्भिण्णिऊण देयं, उब्भिण्णं होदि णादव्व।। (ख) मूलाचार, 441 108. (क) पिण्डनियुक्ति, 351-53 (ख) जीतकल्पभाष्य, 1263 109. (क) पिण्डनियुक्ति, 355 (ख) जीतकल्पभाष्य, 1267 110. मालात् मंचादेरपहृतं साध्वर्थमानीतं यद्भक्तादि तन्मालापहृतं। (क) पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 35 मालोहडं तु भणियं, जं मालाईहिं देइ घेत्तूणं। (ख) पंचवस्तुक, 750
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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