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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...141
पिण्डविशुद्धिप्रकरण में 38 दोषों का निर्देश है। वहाँ पिण्डनियुक्ति में वर्णित आभोग और अनाभोग दायकों का उल्लेख नहीं मिलता है।223
__ अनगारधर्मामृत में रजस्वला, गर्भिणी, अन्य सम्प्रदाय की आर्यिका, शव को कंधे पर उठाने वाले, मृतक के सूतक वाले और नपुंसक आदि दायकों को वर्जित माना गया है।224
परिणाम- अयोग्य व्यक्तियों के हाथ से भिक्षा ग्रहण करने पर निम्न दोष लगते हैं
• यदि मुनि छोटे बच्चे से (जो घर में अकेला है) भिक्षा ग्रहण करे तो जनापवाद हो सकता है कि ये साधु नहीं, लूटेरे हैं जो गृह मालिक की अनुपस्थिति में बच्चों से मन चाहा आहार ले लेते हैं। इससे बालक की माता आदि को भी साधु के प्रति द्वेष होने की संभावना रहती है।
• जिसके मुँह से लार टपक रही हो, ऐसे वृद्ध के हाथ से भिक्षा लेने पर वह लार भिक्षा पात्र में पड़ सकती है इससे लोक में घृणा पैदा होती है। उसके हाथ काँपते हों तो देय वस्तु अथवा वह स्वयं गिर सकता है। यदि घर में उसका प्रभुत्व न हो तो परिवार में अप्रीति भी उत्पन्न हो सकती है।
• मदिरापायी उन्मत्त आदि से भिक्षा लेने पर आलिंगन (वह नशे में बेभान हो तो साधु से लिपट सकता है), पात्र भेदन (पात्र फोड़ सकता है), लोक गर्दा (लोग निन्दा कर सकते हैं कि ये मुनि कितने घृणित हैं कि शराबी से भी आहार लेते हैं), ताडन-मारण- कदाचित वह साधु से रुष्ट होकर कह सकता है कि 'तूं यहाँ क्यों आया है' और उन्हें मारने के लिए भी दौड़ सकता है। इस तरह कई दोष उत्पन्न हो सकते हैं।
• काँपते व्यक्ति से भिक्षा लेने पर परिशाटन आदि दोष संभव हैं। काँप रहे पुरुष के हाथ से वस्तु नीचे गिर सकती है, पात्र से बाहर गिर सकती है। यदि गृहस्थ से भोजन का पात्र छूट जाए तो साधु का पात्रा टूट सकता है।
• ज्वर ग्रस्त से भिक्षा लेने पर रोग संक्रमण की आशंका रहती है। यह लोक निन्दा का कारण भी बनता है कि 'ये मुनि कितने आहार लिप्सु हैं कि बीमार को भी नहीं छोड़ते हैं।'
• अंध से भिक्षा लेने पर लोक निन्दा होती है। अंधा व्यक्ति नहीं देख पाने के कारण जीव हिंसा कर सकता है, ठोकर खाकर गिर सकता है। ऐसी स्थिति में साधु का पात्र भी टूट सकता है।