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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...139 30. छह काय की हिंसा कर रही हो, जैसे हाथों में सचित्त जल, अग्नि, वायु
भरी थैली, फल आदि ग्रहण किये हुए हो, मस्तक पर दूर्वा, पत्र-पुष्पादि धारण किये गये हो, गले में पुष्पमाला हो, कानों में फूलों के आभूषण
हों, पाँव में जलकण लगे हों ऐसी दात्री। 31. संसिक्त द्रव्य लिप्त हाथ- जिसके हाथ दही आदि से लिप्त हों। 32. संसिक्त द्रव्य लिप्त पात्र- जिसके हाथ में लिया हुआ पात्र दही आदि
से खरड़ित हो। 33. संसिक्त द्रव्य उद्वर्तन- जो बड़े पात्र से दधि, घृत आदि निकाल कर
दे रही हो। 34. साधारणदात्री- जो सामान्यतया दूसरों की वस्तु देने के लिए तत्पर हो। 35. चोरितदात्री- जो चुराई गई वस्तु दे रही हो। 36. अग्र कवल दात्री- जो अग्रपिण्ड निकाल कर दे रही हो, जैसे पहली
रोटी गाय आदि के लिए निकाली गई हो उसे देना। 37. संभावित भयवाली- जो ऊर्ध्व, अधो, तिर्यक् इन तीन दिशाओं में
किसी भय की संभावना से भयभीत मन वाली हो। जैसे- ऊपर से छत के पाट, पट्टी आदि गिरने की आशंका हो, नीचे से सांप, बिच्छू आदि के काटने या कांटा आदि चुभने की शंका हो और तिरछी दिशा से गाय,
बैल आदि के आने का भय हो। 38. अन्य मुनियों के उद्देश्य से रखा हुआ आहार दे रही हो। 39. ज्ञातवती- जानबूझकर अशुद्ध आहार दे रही हो। 40. अज्ञातवती- अज्ञानतावश अशुद्ध आहार दे रही हो।
इन 40 प्रकार के दाताओं से भिक्षा लेना दायक दोष है। - यद्यपि इन दोषों में प्रारम्भिक पच्चीस तक की संख्या वाले व्यक्तियों के हाथ से विशेष प्रयोजन होने पर भिक्षा ली जा सकती है। किन्तु शेष पन्द्रह प्रकार के व्यक्तियों के हाथ से भिक्षा लेने का सर्वथा निषेध है।
दशवैकालिक के पाँचवें पिण्डैषणा अध्ययन में प्रतिषिद्ध दायकों का विकीर्ण रूप से उल्लेख मिलता है।219 ___ ओघनियुक्ति एवं पंचाशक में दायक से सम्बन्धित निम्न 20 दोषों का उल्लेख मिलता है- 1. अव्यक्त (बाल) 2. अप्रभु (जिसका घर पर स्वामित्व