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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...131
1. विध्यात- जो अग्नि पहले दिखाई नहीं देती लेकिन बाद में ईंधन डालने पर स्पष्ट दिखाई देती है, वह विध्यात कहलाती है।
2. मुर्मुर- आपिंगल रंग के अर्धविध्यात अग्निकण मुर्मुर कहलाते हैं। 3. अंगारा- ज्वाला रहित अग्नि अंगारा कहलाती है।
4. अप्राप्तज्वाला- चूल्हे पर रखा गया बर्तन जिसको अग्नि का स्पर्श नहीं होता, वह अप्राप्तज्वाला कहलाती है।
5. प्राप्तज्वाला- पिठरक का स्पर्श करने वाली अग्नि प्राप्त ज्वाला कहलाती है।
6. समज्वाला- जो अग्नि बर्तन के ऊपरी भाग तक स्पर्श करती है, वह समज्वाला कहलाती है।
7. व्युत्क्रान्तज्वाला- जो अग्नि चूल्हे पर रखे गए बर्तन के ऊपर तक पहुँच जाती है, वह व्युत्क्रान्तज्वाला कहलाती है।208
सचित्त पर सचित्त निक्षेप की तरह- मिश्र पृथ्वी पर सचित्त पृथ्वी, सचित्त पृथ्वी पर मिश्र पृथ्वी तथा मिश्र पृथ्वी पर मिश्र पृथ्वी का निक्षेप होता है। इसी प्रकार सचित्त और मिश्र के साथ अचित्त निक्षेप की चतुर्भगी भी होती है।209 इन तीन चतुर्भंगियों में अचित्त से सम्बन्धित चतुर्भंगी के चौथे विकल्प वाला भक्तपान ग्राह्य होता है।
षड्जीवनिकाय का अनन्तर और परम्पर निक्षेप इस प्रकार होता है
• सचित्त पृथ्वी पर बिना किसी अन्तराल के रखी गई वस्तु लेना सचित्त पृथ्वीकाय का अनन्तर निक्षेप दोष है।
• इसी प्रकार पृथ्वी पर रखे गए पिठरक आदि का निक्षेप होता है वह परम्पर निक्षिप्त है।
• पानी में डाला हुआ घी का पिंड लेना, अप्काय अनन्तर निक्षिप्त दोष है।
• समुद्र आदि में स्थित नाव आदि में रखे हुए मक्खन, पकवान आदि लेना, अप्काय परम्पर निक्षिप्त दोष है।
• सात प्रकार की अग्नि पर रखे हुए गेहूँ आदि लेना तेउकाय अनन्तर निक्षिप्त दोष है।
• अग्नि के ऊपर रखे गए पात्र की वस्तु लेना, तेउकाय परम्पर निक्षिप्त दोष है।