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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ... 125
• यदि घर के लोग तुच्छ प्रकृति के हों तो सोच सकते हैं कि यह मुनि अपना सम्बन्धी बनाकर हमें नीचा दिखाना चाहता है अतः नाराज होकर मुनि को घर से निष्कासित कर सकते हैं।
• 'तुम मेरी माँ की तरह हो' मुनि का ऐसा कथन सुनकर कोई सरलमना नारी मुनि को पुत्र तुल्य समझकर अपनी विधवा पुत्रवधू को अपनाने की विनंती कर सकती है। इसी भाँति अन्य दोषों की भी संभावना रहती है।
12. विद्यापिण्ड दोष
जिसकी अधिष्ठात्री देवी हो तथा जिसे जप, होम आदि के द्वारा सिद्ध की जाए, वह विद्या है। 175 विद्या का प्रदर्शन करके भिक्षा प्राप्त करना विद्यापिण्ड दोष है। मूलाचार के अनुसार विद्या प्रदान करने का प्रलोभन देकर या विद्या के माहात्म्य से आहार प्राप्त करना विद्या दोष है। 176
परिणाम - विद्या का प्रयोग करने से विद्या से अभिमंत्रित व्यक्ति या उससे सम्बन्धित अन्य कोई व्यक्ति प्रतिविद्या से मुनि का अनिष्ट कर सकता है। विद्या प्रयोग से लोग मुनि की निंदा कर सकते हैं कि ये मुनि पापजीवी, मायावी, कार्मणकारी एवं जादू-टोना करते हैं इससे धर्म की अवहेलना होती है। राजा अथवा न्यायालय आदि में शिकायत करने से राजपुरुषों द्वारा निग्रह और दंड भी प्राप्त हो सकता है। 177
13. मंत्रपिण्ड दोष
जिसका अधिष्ठाता देवता हो तथा जो बिना होम आदि क्रिया के पढ़ने मात्र से सिद्ध हो जाए, वह मंत्र कहलाता है । 178 मंत्र प्रयोग से चमत्कार करके आहार प्राप्त करना मंत्रपिण्ड दोष है। 179 मंत्र पिण्ड का प्रयोग करने पर विद्यापिण्ड के समान ही दोष लगते हैं । ग्रंथकार के अनुसार संघ की प्रभावना के लिए आपवादिक स्थिति में मंत्र का सम्यक प्रयोग किया जा सकता है। 18
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मूलाचार में विद्या और मंत्र को एक साथ मानकर प्रकारान्तर से भी इसकी व्याख्या की गई है। उसके अनुसार आहार देने वाले व्यन्तर देवताओं को विद्या और मंत्र से बुलाकर उन्हें सिद्ध करना विद्यामंत्र दोष है। 181
14. चूर्णपिण्ड दोष
अंजन आदि के प्रयोग से अदृश्य होकर भिक्षा प्राप्त करना 182 अथवा चूर्ण 183 के द्वारा वशीभूत करके भिक्षा प्राप्त करना, चूर्णपिण्ड दोष है । 184