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________________ 126... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन परिणाम - चूर्ण एवं योगपिण्ड सम्बन्धी भिक्षा में विद्या एवं मन्त्रपिण्ड के समान ही दोष लगते हैं। विशेष इतना है कि चूर्णपिण्ड प्रयोग से कोई व्यक्ति द्वेषपूर्वक मुनि का प्राण घात भी कर सकता है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार आँखों को निर्मल करने वाले चूर्ण तथा शरीर को विभूषित और दीप्त करने वाले चूर्ण की विधि बताकर आहार प्राप्त करना चूर्ण दोष है। 185 चूर्णपिण्ड का प्रयोग असफल होने पर साधु धर्म एवं जैन संघ की अवमानना होती है। 15. योगपिण्ड दोष पादलेप अथवा सुगंधित पदार्थ का प्रयोग करके, पानी पर चलकर अथवा आकाश गमन करके भिक्षा प्राप्त करना, योगपिण्ड दोष है। चूर्ण और योग- इन दोनों में द्रव्य की अपेक्षा से विशेष भेद नहीं है। सामान्य द्रव्य से निष्पन्न शुष्क या आर्द्र क्षोद (चूरा) चूर्ण कहलाता है तथा सुगंधित द्रव्य से निष्पन्न शुष्क या लेप रूप पिष्टी योग कहलाता है । 186 16. मूलकर्म दोष मूल यानी संसार वृद्धि का कारण, कर्म यानी पाप क्रिया अथवा संसार चक्र को बढ़ाने वाला पाप मूल कर्म कहलाता है । पिण्ड निर्युक्तिकार के अनुसार प्रयोग द्वारा किसी के कौमार्य को खण्डित करना अथवा किसी में योनि का स्थापन करना मूलकर्म है।187 पिण्डविशुद्धिप्रकरण में सौभाग्य के लिए स्नान, रक्षाबंधन, गर्भाधान, विवाह करवाना और धूप आदि के प्रयोग करना मूलकर्म माना गया है । 188 मूलाचार के अनुसार जो वश में नहीं है, उनको वश में करना तथा वियुक्तों का संयोग करवाना मूलकर्म है। इस तरह की क्रियाओं के द्वारा आहार की प्राप्ति करना मूलकर्म दोष है। 189 अनगारधर्मामृत में इसके स्थान पर वश नामक दोष का उल्लेख है। 190 भिक्षा से सम्बन्धित मूलकर्म दोष का उल्लेख आगम साहित्य में लगभग नहीं मिलता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र (2 / 12 ) में मूलकर्म का उल्लेख तो है पर वहाँ भिक्षा का प्रसंग नहीं है। इस संदर्भ में यह संभावना हो सकती है कि भगवान महावीर तथा उनके बाद भी कुछ वर्षों तक मूलकर्म का प्रयोग भिक्षा प्राप्ति के लिए नहीं किया जाता था लेकिन परवर्ती काल में किसी साधु ने यह प्रयोग किया होगा इसीलिए पिण्डनिर्युक्तिकार ने इसे उत्पादना दोष के साथ
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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