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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...123
चिकित्सा करते समय कन्दमूल आदि का उपयोग किया जाये तो जीव हिंसा, असंयम आदि दोष लगते हैं । 162
7. क्रोध पिण्ड
अपनी विद्या और तप के प्रभाव से, राजकुल की प्रियता से तथा अपने शारीरिक बल आदि के प्रभाव से भिक्षा प्राप्त करना क्रोध पिण्ड है। 163 क्रोध का प्रदर्शन या साधु का रोष देखकर गृहस्थ यह सोचे कि यदि मुनि को भिक्षा नहीं दूंगा तो राजा मुझ पर कुपित हो जायेंगे, क्योंकि ये राजा के कृपा पात्र हैं। इस तरह गृहस्थ से भिक्षा प्राप्त करना क्रोध पिण्ड दोष है। 164
8. मान पिण्ड
दूसरों के द्वारा उत्साहित किए जाने पर अथवा लब्धि और प्रशंसात्मक शब्दों को सुनकर गर्व से भिक्षा की एषणा करना अथवा किसी के द्वारा अपमानित होने पर उसे अपना बल दिखाने के लिए पिण्ड की एषणा करना मान पिण्ड दोष है। 165
परिणाम - मान पिण्ड दोष युक्त भिक्षा ग्रहण करने से कभी-कभी पतिपत्नी के बीच क्लेश हो सकता है जैसे कि पत्नी ने आहार देने के लिए अपनी अरुचि दिखाई। मुनि ने इसे अपमान समझकर उसके प्राणनाथ से भिक्षा की याचना की। यदि उसने रुचिपूर्वक आहार दे दिया तो पत्नी स्वयं को अपमानित महसूस कर आत्मघात भी कर सकती है। मान पिण्ड ग्रहण करने से जिन वाणई की अवहेलना भी होती है। 166
9. माया पिण्ड
माया पूर्वक भिक्षा ग्रहण करना मायापिण्ड दोष है। 167
10. लोभ पिण्ड
आसक्ति पूर्वक किसी विशेष पदार्थ की गवेषणा करना अथवा गरिष्ठ या उत्तम पदार्थ को अति मात्रा में ग्रहण करना लोभ पिण्ड दोष है। 168
क्रोधादि पिण्ड के परिणाम - क्रोध, मान आदि चारों पिण्ड सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर कर्म बंध तो होता ही है। इसी के साथ आन्तरिक द्वेष, जिन शासन की लघुता आदि दोष भी लगते हैं।