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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...119
पूर्व काल में धाय पाँच प्रकार की होती थी और नाम के अनुरूप ही उनके कार्य होते थे। जैसे 1. क्षीर धात्री- स्तनपान कराने वाली 2. मज्जन धात्री- स्नान कराने वाली 3. मंडन धात्री- आभूषण पहनाने वाली 4. क्रीड़न धात्री-क्रीड़ा कराने वाली 5. अंक धात्री- बालक को गोद में रखने वाली।149
दिगम्बर के मूलाचार में मार्जन, मण्डन, क्रीडन, क्षीर और अम्ब तथा अनगार धर्मामृत में मार्जन, क्रीड़न, स्तन्यपान, स्वापन और मण्डन- इन पाँच नामों का उल्लेख है।150
उक्त पाँच में से किसी भी प्रकार के कार्य द्वारा गृहस्थ से आहार आदि की याचना करना अथवा किसी वस्तु की लालसा से बालक को प्रसन्न रखने का कार्य करना धात्री दोष है।
जैसे कि कोई गृहस्थ प्रभु दर्शन या पूजन के हेतु से आया हो और उनके साथ आया बच्चा रोने लगे तो उनसे यह कहना कि आप पूजा आदि धर्म क्रियाएँ अच्छे से कर लो, बच्चे को हम संभाल लेंगे। इस तरह माता-पिता को खुश करके भिक्षा लेना धात्री दोष है। आजकल कई साधु-साध्वी बच्चों को घंटो तक खिलाते हैं, पुचकारते हैं, गोद में बिठाते हैं। यदि इसके पीछे किसी वस्तु प्राप्ति की कामना हो तो धात्री दोष लगता है अन्यथा राग भाव की वृद्धि होती है।
परिणाम- बालक का ध्यान रखने पर उसके अभिभावक साधु के प्रति आकर्षित होकर आधाकर्मी आदि दूषित आहार दे सकते हैं।
. कुछ लोग गलत सोच सकते हैं कि इस साधु का स्त्री के साथ कुछ सम्बन्ध होना चाहिए। __• यदि माता धर्माभिमुखी नहीं हो तो उसके मन में द्वेष हो सकता है तथा विचार कर सकती है कि इन साधुओं को दूसरों की चिन्ता करने की कहाँ जरूरत है?
• किसी कारणवश बालक बीमार हो जाये तो साधु पर सन्देह हो सकता है कि मेरे बच्चे को रुग्ण कर दिया। इस स्थिति में गृह स्वामिनी साधु के साथ कलह कर सकती है जिससे धर्म की निन्दा होती है। 2. दूती दोष
दौत्य कर्म अर्थात संदेश वाहक की भाँति एक व्यक्ति के संदेश को दूसरे स्थान तक पहुँचाकर भिक्षा प्राप्त करना, दूती दोष है। यह दोष दो प्रकार से लगता है