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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...113
4. कपाट खोलने से उसके पीछे बालक बैठा हो तो उसको चोट लग सकती है।
__कुंचिका रहित कपाट यदि प्रतिदिन खुलता है और दरवाजा धरती से नहीं घिसता है तो ऐसे दरवाजे खोलने पर साधु भिक्षा प्राप्त कर सकता है। इसी प्रकार मटका या पात्र का मुँह यदि प्रतिदिन खोला जाता हो अथवा उसका मुख कपड़े से बंद किया जाता हो और लाख आदि से मुद्रित नहीं किया जाता हो तो उसको खोलकर दी गई भिक्षा ग्राह्य है।109 13. मालापहृत दोष ___यह उद्गम का तेरहवाँ दोष है। साधु के निमित्त छींके आदि से, ऊपरी मंजिल से अथवा भूमिगत कमरे से आहार लाकर देना, मालापहृत दोष है।110 दिगम्बर साहित्य में मालापहृत के स्थान पर मालारोहण111 तथा आरोह शब्द का प्रयोग हुआ है।112 ___मालापहत दोष मुख्यत: दो प्रकार का होता है- जघन्य मालापहृत और उत्कृष्ट मालापहृत। पैर के अग्र भाग के बल पर खड़े होकर अथवा मंचक, आसंदी आदि के ऊपर खड़े होकर भिक्षा देना जघन्य मालापहत दोष है। निसरणी आदि पर चढ़कर अथवा प्रासाद के ऊपरी हिस्से से उतारकर भिक्षा देना उत्कृष्ट मालापहत दोष है।113
प्रकारान्तर से मालापहृत दोष के तीन भेद भी मिलते हैं- 1. ऊर्ध्व 2. अध: 3. तिर्यक। ऊपर छींके आदि से उतारकर वस्तु देना ऊर्ध्व मालापहृत है, नीचे भूमिगृह से लाकर देना अध: मालापहत है तथा बहुत ऊँचे कुंभ आदि से अथवा गहरे गोखलों में से हाथ डालकर निकाली गई वस्त देना तिर्यक मालापहृत दोष है।114 भाष्यकार के अनुसार बीच की मंजिल में रखा हुआ आहार देना तिर्यक् मालापहृत है।115
पिण्डविशुद्धि प्रकरण में मालापहृत दोष के चार भेद किए गए हैं। उपर्युक्त तीन के अतिरिक्त चौथा उभय मालापहृत का उल्लेख भी किया गया है। उभय मालापहत दोष की व्याख्या करते हुए टीकाकार यशोदेवसूरि ने कहा है कि कुम्भी, उष्ट्रिका अथवा बड़े कोठे में से आहार देने के लिए एड़ी को ऊँचा करते हुए हाथों को नीचे की ओर फैलाना उभय मालापहत दोष है। इसमें शरीर का व्यापार ऊपर और नीचे दोनों दिशाओं में हुआ है, अतः इसका नाम उभय मालापहृत है।116