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114... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
___यदि गृहस्वामी साधु के आगमन से पूर्व ही निसरणी आदि पर चढ़ा हुआ हो तो हाथ लम्बा करके सुपात्र दान दे सकता है क्योंकि यह अनुच्चोत्क्षिप्त है।117
पिण्डविशुद्धि प्रकरण में एक तर्क उपस्थित किया गया है कि ऊपर से उतारकर देना तो मालापहत दोष है लेकिन नीचे भूमिगृह से लाकर देना मालापहृत कैसे हुआ? इसके उत्तर में बताया गया है कि प्रयत्नपूर्वक भूगृह से लाए हुए आहार को भी मालापहृत कहा जा सकता है क्योंकि ऐसा आगम में रूढ़ हो गया है अत: नीचे से लायी गई वस्तु के लिए मालापहत शब्द का प्रयोग गलत नहीं है।118 ___परिणाम- पिण्ड नियुक्तिकार मालापहृत के दोष बताते हुए कहते हैं कि निसरणी, फलक आदि पर चढ़कर भोजन-पानी दिया जाए और दाता के पैर का संतुलन बिगड़ जाए तो वह नीचे गिर सकता है, जिससे उसके हाथ-पैर में चोट लग सकती है। यदि वहाँ ब्रीहिदलनक यंत्र आदि पड़े हों तो उसकी मृत्यु हो सकती है। यदि गर्भिणी स्त्री हो तो गर्भस्थ जीव हिंसा की संभावना भी रहती है तथा नीचे गिरने से उसके शरीर के नीचे आए पृथ्वीकाय आदि जीव तथा उसके आश्रित अन्य जीवों की हिंसा भी हो सकती है। मुनि के प्रति द्वेष भाव होने से द्रव्य प्राप्ति में व्यवधान हो सकता है। इसी के साथ जिन वाणी की अवहेलना तथा लोगों में यह भ्रांति फैलती है कि ये मुनि भविष्य में होने वाले अनर्थों को नहीं जानते।119 14. आच्छेद्य दोष
किसी बालक या भृत्यादि की वस्तु को उसकी आज्ञा के बिना बलात छीनकर साधु को देना, आच्छेद्य दोष है।120 मूलाचार के अनुसार मुनि के भिक्षाश्रम को देखकर राजा और चोर आदि के भय से साधु को आहार देना आच्छेद्य दोष है।121 आच्छेद्य दोष तीन प्रकार का होता है____(i) प्रभु विषयक- गृहस्वामी अपने पुत्र, पुत्री, कर्मचारी आदि की वस्तु को बलात छीनकर साधु को देता है तो वह प्रभु विषयक आच्छेद्य दोष है।
(ii) स्वामी विषयक - ग्रामनायक के द्वारा अपने किसी कौटुम्बिक आदि की वस्तु को बलात छीनकर साधु को दी जाए तो वह स्वामी विषयक आच्छेद्य दोष है।122