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112... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन अभिघट आचीर्ण और अनाचीर्ण दो प्रकार का होता है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार तीन या सात घरों से लाई हुई भिक्षा आचीर्ण है तथा इससे अधिक दूरी से लाई गई भिक्षा अनाचीर्ण है। सर्व अभिघट के चार भेद हैं- 1. स्वग्राम 2. परग्राम 3. स्वदेश 4. परदेश। पूर्व दिशा के मुहल्ले से पश्चिम दिशा के मुहल्ले में ले जाना स्वग्राम अभिघट दोष है। दूसरे गाँव से लाना परग्राम अभिघट दोष है। इसी प्रकार स्वदेश और परदेश समझना चाहिए। सर्वाभिघट के सभी भेद अनाचीर्ण हैं।106 12. उद्भिन्न दोष
गोबर आदि से लीपकर बन्द किए हुए या लाख आदि से मुद्रित डिब्बे आदि को खोलकर अथवा कपाट आदि खोलकर घी, शक्कर आदि वस्तुएँ देना, उद्भिन्न दोष कहलाता है।107
उद्भिन्न दोष दो प्रकार का होता है- पिहितोद्भिन्न और कपाटोद्भिन्न।
(i) पिहितोद्भिन्न- साधु के निमित्त सील बंद डिब्बे, कोठी आदि का मुख खोलकर घी या तेल देना पिहितोद्भिन्न दोष है। यह सचित्त और अचित्त दोनों प्रकार का हो सकता है।
(ii) कपाटोद्भिन्न- साधु के निमित्त बंद कपाट को खोलकर भिक्षा देना, कपाटोद्भिन्न दोष है।
परिणाम- यदि साधु के निमित्त तेल का पात्र खोला गया है तो उसमें से पुत्र आदि को देने पर अथवा क्रय-विक्रय करने पर पापमय प्रवृत्ति होती है। यदि गृहस्थ पात्र को बंद करना भूल जाए तो उसमें चींटी, मूषक आदि जीव गिरने से उनकी हिंसा हो सकती है क्योंकि सील या लेप को खोलने और बंद करने से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु काय आदि जीवों की हिंसा होती है।108
कपाटोभिन्न से निम्न दोष भी संभव है__ 1. कपाट के पास मिट्टी, पानी और वनस्पति आदि रहने से उनकी विराधना हो सकती है।
2. यदि जल फैल जाता है तो उसके समीपवर्ती चूल्हे से अग्निकाय की विराधना संभव है। अग्नि के साथ वायुकाय के जीवों की विराधना भी जुड़ी हुई है।
3. कपाट की आवर्तन पीठिका ऊपर-नीचे होने से छिपकली, कुंथु, चींटी आदि त्रस जीवों की विराधना भी हो सकती है।