________________
आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...111 यदि मुनियों को भी भिक्षा दी जाए तो लाभ होगा। अभी बहुत से साधु समीपवर्ती गाँव में हैं, बीच में नदी पड़ने से इधर आ नहीं सकते। अत: मैं ही साधुओं को देने के लिए पास के गाँव में चला जाऊं। वहाँ भी मुनियों को आधाकर्म की आशंका न हो, इसलिए दूसरे गाँव में भी मनियों के स्थंडिल के लिए आने-जाने वाले मार्ग पर ब्राह्मण आदि को दान देना प्रारंभ करें। उस समय बड़ी नीति के लिए निकले हुए मुनियों को देखकर कहे कि हे मुनि प्रवरों! हमारे पास बहुत सारे मोदक हैं, आप कृपा कर लाभ दें। यदि मुनिजन उन्हें शुद्ध समझकर ग्रहण कर लें तो निशीथ परग्राम विषयक अभ्याहत दोष लगता है।105 ____(iii) नोनिशीथ स्वग्राम अभ्याहृत- कोई मुनि भिक्षार्थ परिभ्रमण करते हुए किसी घर में पहुँचे, वहाँ भोज आदि का प्रसंग होने से गृह मालिक साधु को भिक्षा नहीं दे सका, परन्तु भोजन आदि से निवृत होने के पश्चात उपाश्रय में ले जाकर देना, नो निशीथ स्वग्राम विषयक अभ्याहृत दोष है। इस दोष में मुनि को आहारादि की पूर्ण जानकारी रहती है।
(iv) नोनिशीथ परग्राम अभ्याहृत- उपर्युक्त स्थिति में दूसरे गाँव जाकर आहार आदि देना, नो निशीथ परग्राम विषयक अभ्याहत दोष है।
दोष- इसमें गमनागमन की प्रवृत्ति होने से षट्काय जीव की विराधना होती है और गृहस्थ को असत्य भाषण का दोष लगता है।
___ आचीर्ण क्षेत्र विषयक अभ्याहृत- जिस भोज में खाने वालों की पंक्ति इतनी लम्बी हो कि साध भोजन सामग्री तक पहँच न सकें, उस स्थिति में जहाँ साधु खड़े हों वहाँ लाकर आहारादि देना, आचीर्ण क्षेत्र अभ्याहत दोष है। एक हाथ से दूसरे हाथ में सौंपते हुए आहार आदि देना जघन्य आचीर्ण है, सौ हाथ परिमित क्षेत्र से लाया हुआ आहारादि देना उत्कृष्ट आचीर्ण है तथा इसके मध्यवर्ती क्षेत्र से लाया गया आहार देना मध्यम आचीर्ण क्षेत्राभिहत दोष है। ___ आचीर्ण गृह विषयक अभ्याहृत- तीन घरों के अन्तराल से उपयोग पूर्वक लाया हुआ आहार स्वग्राम गृहान्तर अभ्याहृत दोष युक्त कहलाता है। नो गृहान्तर दोष वाटक, गली आदि अनेक प्रकार का होता है। इसमें लाने वाले का उपयोग संभव नहीं होता इसलिए यह अनाचीर्ण है।
मूलाचार की टीका में 'अभिहड' की संस्कृत छाया अभिघट की है तथा इसको देश अभिघट और सर्व अभिघट - इन दो भागों में विभक्त किया है। देश