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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...85 जो लोग शारीरिक दृष्टि से किसी भी प्रकार का श्रम करने में पूर्णतया असमर्थ हैं तथा जो लोग आत्म साधना और धर्म साधना में लगे हुए हैं तथा समाज से थोड़ा लेकर बहुत अधिक देते हैं उनके लिए भिक्षावृत्ति को खुली रखना आवश्यक है। आहार की शुद्धता और औद्देशिकता का प्रश्न सामान्यतया जैन परम्परा में औद्देशिक अर्थात मुनि के निमित्त बनाये गये आहार का ग्रहण निषिद्ध माना गया है। प्राचीन काल से लेकर आज तक यह परम्परा जीवित है। आज भी जैन संघ के अनेक सम्प्रदायों में औद्देशिक आहार का ग्रहण वर्जित ही माना जाता है। किन्तु कालान्तर में यह विचार प्रमुख हुआ कि आहार अनौद्देशिक हो यह तो ठीक है, किन्तु उसे शुद्ध भी होना चाहिए। मदिरा, मांस आदि महाविकृतियों एवं बाईस अभक्ष्यों से रहित आहार शुद्ध कहलाता है। सामान्यता तो जैन मुनि के लिए यही कहा गया है कि उसका आहार अनौद्देशिक और शुद्ध ही है किन्तु आपवादिक स्थिति में क्या किया जाये? अनौद्देशिकता और परिशुद्धता में किसे प्राथमिकता दी जाये? यह विवाद का विषय बना हुआ है। प्रश्न हो सकता है कि यदि भूखे रहना असंभव हो और अनौद्देशिक आहार अशुद्ध हो तथा औद्देशिक आहार शुद्ध हो तो कौनसा आहार ग्रहण किया जाए? कुछ आचार्यों का कहना है कि ऐसी आपवादिक स्थिति में अशुद्ध आहार ले सकते हैं किन्तु औद्देशिक आहार नहीं लेना चाहिए। दूसरी परम्परा यह मानती है कि यदि औद्देशिक आहार शुद्ध हो तो उसे ले लेना चाहिए लेकिन अशुद्ध आहार नहीं लेना चाहिए। इस सम्बन्ध में जहाँ तक आगमों का प्रश्न है वहाँ अनौद्देशिकता को ही प्रधानता दी गई है।52 इसका एक कारण यह भी है कि आगमों में सामान्यतया आपवादिक परिस्थिति में क्या करना चाहिए इसका सुस्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। उनमें सामान्य नियमों की ही चर्चा है। यद्यपि आचारांग में कुछ स्थलों पर कुछ आपवादिक परिस्थितियों का संकेत हुआ है, किन्तु मुख्यत: आगम सामान्य स्थिति की ही चर्चा करते हैं। आपवादिक परिस्थिति में क्या करना चाहिए इसकी विस्तृत चर्चा आगमिक व्याख्या साहित्य में और उसमें भी विशेष रूप से छेद सूत्रों की व्याख्याओं में मिलती है।53
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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