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वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...67
• गृहस्थ ने साधु के लिए सचित्त शिला पर, दीमक लगे जीव युक्त काष्ठ पर तथा मकड़ी के जालों से युक्त स्थान पर अचित्त नमक का भेदन (टुकड़े) किया हो, लवण को सूक्ष्म करने के लिए पीसा हो तो मुनि उसे अप्रासुक जानकर ग्रहण न करें।
• गृहस्थ साधु के निमित्त हाथ या चम्मच आदि धोकर आहार बहराये तो मनि उसे ग्रहण न करें, इससे अप्काय आदि जीव विराधना का दोष लगता है।
• गृहस्थ अत्यन्त उष्ण भोजन आदि को पंखे आदि की हवा से ठंडा करके देखें तो मुनि उसे ग्रहण न करें। इससे वायुकायिक जीव हिंसा का प्रत्यक्ष दोष लगता है।
• कोई गृहस्थ सचित्त पुष्प आदि का छेदन कर अथवा किसी वनस्पतिकाय की विराधना कर आहार दें तो वह मुनि के लिए अकल्पनीय होता है इसलिए उसे ग्रहण न करें।
. गृहस्थ के द्वारा एक बर्तन में से आहार को दूसरे बर्तन में निकालकर, उसे सचित्त वस्तु पर रखकर अथवा सचित्त वस्तु का स्पर्श करते हुए, सचित्त जल में चलकर या उसे हिलाकर, इसी तरह षट्काय जीवों की विराधना करते हुए आहार पानी दिया जाए तो मुनि उसे ग्रहण न करें।
• किसी गृहस्थ ने खाद्य पदार्थ का एक पिण्ड भिक्षार्थी मुनि के लिए और दूसरा एक पिण्ड स्थविर मुनि के लिए दिया हो और यदि गवेषणा करने पर भी स्थविर मुनि की प्राप्ति न हो तो उसे एकान्त, अचित्त और प्रासुक स्थण्डिल भूमि पर परिष्ठापित कर दें।
• मुनि द्वारा गवेषणा पूर्वक लाया गया आहार-पानी उपभोग के बाद बच जाये और उसके पुनर्सेवन की कोई संभावना न हो तो निकटवर्ती सांभोगिक, साधर्मिक या समनोज्ञ साधु-साध्वी को उसके लिए निवेदन करें। यदि कोई खा सके तो उन्हें दें, नहीं तो अचित्त भूमि पर परिष्ठापित कर दें।
• भिक्षाटन करने वाला मुनि गर्भवती की दोहद पूर्ति के लिए बना हुआ आहार ग्रहण न करें, भिक्षाचर्या के समय इस विषयका पूर्ण विवेक रखें।
• भिक्षाचरी मुनि जहाँ अंधकार हो वहाँ से आहार ग्रहण न करें।
• भिक्षार्थी मुनि जहाँ पुष्पादि बिखरे हुए हों वहाँ से आहार आदि ग्रहण न करें।