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68... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
• भिक्षार्थी मुनि ऐसे खाद्य पदार्थ ग्रहण न करें जिसमें से काँटे, आदि फेंकना पड़े।
• भिक्षाचरों को देने के लिए बनाया हुआ आहार ग्रहण न करें। • जिस गृहस्थ के यहाँ प्रतिदिन आहारादि का निश्चित भाग दिया जाता हो उस घर से भी आहार न लें।
अटवी पार करने वाले यात्रियों से आहारादि ग्रहण न करें ।
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• राजा, राज परिवार या राज कर्मचारियों के निमित्त बना हुआ आहारादि ग्रहण न करें | 31
गुठली
मूलाचार के अनुसार पंक्तिबद्ध तीन या सात घरों से आया हुआ आहार ही मुनि के लिए ग्राह्य है। इसके सिवाय इधर-उधर के घरों से आया हुआ आहार ईर्यापथिक शुद्धि न होने के कारण अग्राह्य है। 32
आचार्य वट्टकेर के अनुसार आहारार्थ गमन करने वाले मुनि को निम्न पाँच नियमों का संरक्षण करना अनिवार्य है - 1. जिनाज्ञा का पालन 2. स्वेच्छावृत्ति का त्याग 3. सम्यकत्वानुकूल आचरण 4. रत्नत्रय का परिपालन और 5. संयम रक्षा। इन नियमों में से कोई भी दोष संभावित हो तो मुनि को तत्काल आहार का त्याग कर देना चाहिए । भिक्षाचर्या हेतु उद्यत हुआ मुनि मूलगुण, उत्तरगुण, शील, संयम आदि की रक्षा करते हुए तथा शरीर, परिग्रह एवं संसार के प्रति वैराग्य का चिन्तन करते हुए आहारार्थ गमन करें | 33
विजयोदया टीका के मतानुसार मुनि को दरिद्र कुलों में और आचारहीन धन सम्पन्न कुलों में भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए, क्योंकि दरिद्र कुलीन व्यक्तियों को अपने पेट भरने की ही समस्या रहती है तब वे मुनि को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कैसे दे सकते हैं ?
इसी टीका के अनुसार जिस घर में नृत्य संगीत होता हो, झण्डियाँ लगी हों, उन्मत्त लोग रहते हों वहाँ पर भी भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए। इसके सिवाय शराबी, वेश्या, लोक निन्दित कुल, यज्ञ शाला, दान शाला आदि में भी भिक्षार्थ गमन का निषेध किया गया है। 34
विजयोदया टीका में यह भी उल्लिखित है कि मुनि आहारार्थ जाते समय अपने आगे की चार हाथ परिमाण भूमि देखते हुए चलें। गमन करते वक्त हाथ लटकते हुए हों, चरण निक्षेप अधिक अन्तराल से न हो, शरीर विकार रहित