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66... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
5. सरजस्क मिट्टी - सचित्त मिट्टी युक्त हाथ से भिक्षा देना। 6. ऊष - खारी मिट्टी युक्त हाथ से भिक्षा देना। 7. हरिताल – हड़ताल (एक जाति की मिट्टी) युक्त हाथ से भिक्षा देना। 8. हिंगुल - हिंगुल (लाल रंग का पदार्थ) युक्त हाथ से भिक्षा देना। 9. मेनसिल - मेनसिल (विष वर्धक पदार्थ) युक्त हाथ से भिक्षा देना। 10. अंजन - अंजन युक्त हाथ से भिक्षा देना। 11. गेरू - लाल मिट्टी युक्त हाथ से भिक्षा देना। 12. वर्णिका - पीली मिट्टी युक्त हाथ से भिक्षा देना। 13. सेटिका - खड़िया मिट्टी युक्त हाथ से भिक्षा देना।
14. सौराष्ट्रिका - सौराष्ट्र में पायी जाने वाली मिट्टी से लिप्त हाथ द्वारा भिक्षा देना।
15. तत्काल पीसे हुए अनछाने आटे युक्त हाथ से भिक्षा देना 16. चावलों के छिलके युक्त हाथ से भिक्षा देना।
17. गीली वनस्पति का चूर्ण या फलों के बारीक टुकड़ों युक्त हाथ से भिक्षा देना। ___इनमें पुरःकर्म, पश्चात्कर्म, उदकाई और सस्निग्ध ये चार अप्काय से सम्बन्धित हैं। पिष्ट, कुक्कुस और उक्कुट्ठ ये तीन वनस्पतिकाय सम्बन्धी हैं और शेष ग्यारह पृथ्वीकाय से सम्बन्धित हैं। यदि दाता के हाथ इन 18 प्रकार की वस्तुओं से लिप्त या संस्पर्शित हो तो मुनि उस व्यक्ति से भिक्षा ग्रहण नहीं करें। इससे षट्काय जीवों की विराधना होती है।30
• गृहस्थ के घर भिक्षार्थ प्रविष्ट हुए साधु को यह ज्ञात हो जाए कि देय पदार्थ (भोजन-पानी) अग्नि पर रखा हुआ है और ज्वाला से सम्बद्ध है तो उसे ग्रहण नहीं करें।
केवली पुरुषों ने अग्निकायादि संपृक्त आहार ग्रहण करने को कर्मास्रव माना है क्योंकि साधु-साध्वी के निमित्त अग्नि पर रखे बर्तन से आहार निकालने पर, आंगन में अन्न आदि को डाल कर हाथ आदि से हिलाने पर एवं अग्नि पर से बर्तन को उतारने पर अग्निकाय जीवों की हिंसा होती है। अत: अग्नि पर रखे हुए, अग्नि से तुरन्त उतारे हुए या अग्नि पात्र से अन्य पात्र में डाले हुए पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए।