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50... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
बच्चों को भी यह सब नियम ध्यान रखने चाहिए। उन्हें फटे एवं गन्दे वस्त्र भी नहीं पहनने चाहिए तथा चलते समय वस्त्र जमीन में भी नहीं लगने चाहिए।
22. शुद्धि के वस्त्र बाथरूम आदि में नहीं बदलें और शुद्धि के वस्त्र पहनकर शौच अथवा बाथरूम का प्रयोग नहीं करें और यदि करें तो उन वस्त्रों को पूर्ण रूप से बदलकर स्नानपूर्वक नये शुद्ध वस्त्र धारण करना आवश्यक है अन्यथा काय शुद्धि नहीं रहती ।
23. चौके में कंघा, नेल पॉलिश, बेल्ट, स्वेटर आदि नहीं रखें एवं चौके में कंघी भी नहीं करें।
24. यदि मुनि को आहार देना हो तो टेबिल पहले से रख लें। यदि आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक हो तो बड़ी चौकी रखें। जिस पर सामग्री रखने में सुविधा रहती है।
25. बर्तनों में वार्निस एवं स्टीकर नहीं लगा होना चाहिए क्योंकि वह सर्वथा अशुद्ध है।
26. जहाँ चौका लगा हो उस कमरे में लेटरिन, बाथरूम नहीं होना चाहिए। 27. कमण्डलू में चौबीस घंटे की मर्यादा वाला गर्म जल ही भरें, ठंडा या कम मर्यादा वाला नहीं।
28. जिसकी गर्माहट में थोड़ा-थोड़ा अंतर हो ऐसा जल तीन बर्तनों में तीन जगह रखना चाहिए जिसे साधु की अनुकूलता के अनुसार दे सकें।
29. यदि आहार का दान दूसरे के चौके में कर रहे हों तो अपनी भोजन सामग्री अवश्य ले जाएं।
30. जब भी चक्की से कुछ पीसें या पिसवाएँ तो वह साफ होनी चाहिए, क्योंकि वहाँ सूक्ष्म जीव-जंतु और उसमें पुराना आटा भी लगा रह सकता है। अतः शीत, ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में क्रमश: 7, 5, 3 दिन के अन्तर से चक्की अवश्य साफ करें।
31. यदि हाथों में किसी प्रकार की आहार सामग्री लगी हुई हो तो आहार नहीं दें।
32. परिवार में सूतक-पातक होने पर और शव दाह में सम्मिलित होने पर भी आहार दान नहीं करें।
33. आहार देते समय मृत्यु सम्बन्धी बात नहीं करें। पीप, चमड़ा आदि