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वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...49 रहता है और शोधन अच्छे से होता है। ___ 10. एक व्यक्ति एक ही वस्तु पकड़े, क्योंकि इससे शोधन अच्छी तरह हो सकता है।
11. आहार देते समय भावों की विशुद्धि को उत्तरोत्तर बढ़ायें। संभव हो तो अन्तर्मन में नवकार मंत्र भी पढ़ सकते हैं। ___12. प्रतिदिन माला गिनें कि तीन कम नौ करोड़ मुनिराजों का आहार निरंतराय हो। ____ 13. आहार का शोधन खुली प्लेट में ही करें, जिससे सूक्ष्म जीवों को अच्छी तरह देखा जा सके।
14. सूखी सामग्री का शोधन एक दिन पहले ही अच्छी तरह कर लेना चाहिए, जिससे कंकर, बीज आदि का शोधन ठीक से हो जाये। ___15. अधिक गर्म जल, दूध वगैरह न दें, थाली में थोड़ा ठंडा करके दें। यदि गाय का दूध हो तो ऐसे ही दें और भैंस का हो तो आधे गिलास दूध में आधा जल मिलाकर दें। यदि ऐसा ही लेते हों तो बिना जल मिलाएँ भी दे सकते हैं। ____16. आहार देते समय जिस हाथ में पात्र हो उससे ग्रास नहीं उठायें, क्योंकि इससे अन्तराय हो जाता है। सामान्यतया अन्तराय आने में साधु का लाभान्तराय कर्म एवं दाता का दानान्तराय कर्म का उदय होता है। लेकिन दाता की असावधानियों के कारण भी कई बार अंतराय आती हैं। ___17. आहार दान के समय द्रव्य, क्षेत्र काल एवं भाव शुद्धि, ईंधन शुद्धि और बर्तनों की शुद्धि आवश्यक है।
18. साधु को आहार देते समय दाता का हाथ साधु की अंजली से स्पर्श नहीं होना चाहिए। यदि अंजली के बाहरी भाग से कोई बाल या जीव हटाना हो तो हटा सकते हैं।
19. सामग्री देते समय उसे गिराए नहीं, कभी-कभी अधिक गिरने से साधु वह वस्तु लेना बंद भी कर सकते हैं।
20. गैस, चूल्हा, लाईट आदि पड़गाहन के पूर्व ही बंद कर दें।
21. आहार दाता मन्दिर के वस्त्र पहनकर भिक्षा नहीं दें तथा पुरुष वस्त्र बदलते समय गीला तौलिया पहनकर वस्त्र बदलें, क्योंकि अशुद्ध वस्त्रों के ऊपर शुद्ध वस्त्र पहनने से शुद्ध वस्त्र भी अशुद्ध हो जाते हैं। महिलाओं एवं