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48... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन ____8. गेहूँ, मूंग, घी, मुनक्का, मीठा अनार, पके आम, आंवला, कैंथ, दूध, सेंधा नमक आदि वात शांति के द्रव्य हैं।
• मधुर रस, चावल की खीर, मुनक्का, आंवला, छुआरा, ककड़ी, केला, घी, दूध आदि पित्त शांति के द्रव्य हैं।
• चना, गुड़, सौंठ, काली मिर्च, पीपर आदि कफ शांति के द्रव्य हैं।
देह निरोगता के लिए वात, पित्त, कफ की शांति आवश्यक है। इसलिए मुनि को आहार देते समय त्रिदोष नाशक वस्तुएँ अवश्य प्रदान करें। निरन्तराय आहार हेतु अपेक्षित सावधानियाँ ___मुनि को आहार देते समय किसी तरह की अन्तराय न आये, यह दाता की सर्वोत्तम उपलब्धि है क्योंकि निरंतराय आहार से श्रमण धर्म की साधना उत्तरोत्तर की जा सकती है।
1. तरल पदार्थ- जल, दूध, रस आदि जो भी प्रदान करें तुरंत छानकर दें, लेकिन प्लास्टिक की छन्नी का प्रयोग नहीं करें। एकदम जल्दी और एकदम धीरे नहीं दें।
2. पड़गाहन से पूर्व देने योग्य खाद्य सामग्री का शोधन कर लें तथा चौके में जीव वगैरह न हो इसका भी सूक्ष्मता से निरीक्षण कर लें।
3. यदि साधु को आहार लेते समय घबराहट हो रही हो तो नींबू, अमृतधारा या हाथ में थोड़ा बेसन लगाकर सुंघा दें।
4. चौके के अतिरिक्त अन्य लोगों को खाद्य सामग्री नहीं पकड़ाएं, उनसे चम्मच द्वारा ही सामग्री दिलवायें। ____5. कोई भी वस्तु जल्दबाजी में नहीं दें। देने योग्य वस्तु को कम से कम तीन बार पलटकर देखें।
6. खाद्य सामग्री का शोधन वृद्धजनों एवं बच्चों से न करवायें, उनके द्वारा कोई भी सामग्री चम्मच से दिलवायें। ___7. मुनि, आर्यिक, ऐलक, क्षुल्लक आदि मुनियों को किसी भी खाद्य वस्तु के लिए तीन बार निवेदन करें। कोई भी सामग्री जबरदस्ती नहीं दें।
8. यदि देय पात्र में मक्खी गिर जाये तो उसे राख में रखने से मरने की संभावना नहीं रहती है।
9. ग्रास देने का कार्य एक ही व्यक्ति करें क्योंकि उसका उपयोग स्थिर