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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...47 4. घृत शुद्धि - शुद्ध दही के मक्खन को तत्काल अग्नि पर गर्म करके घृत तैयार कर लेना चाहिए, इसमें से जल का अंश पूर्णत: निकल जाना चाहिए। यदि जल का अंश रह जाये तो चौबीस घंटे के बाद अभक्ष्य हो जाता है। मक्खन को तत्काल गर्म कर लेना चाहिए, जिससे जीवोत्पत्ति न हो। इसी प्रकार मलाई को भी तुरंत गर्म करके घी निकालना चाहिए। कई लोग तीन-चार दिन की मलाई इकट्ठी हो जाने पर गर्म करके घी अभक्ष्य हैं, वह घी अमर्यादित कहलाता है और साधु के लिए अग्राह्य होता है। ____5. गुड़ शुद्धि – बाजार में गन्ने के रस की दुकान पर प्रासुक जल से मशीन धुलवाकर और गन्नों का संशोधन करके, अधिक मात्रा में रस निकलवाकर घर पर ही गुड़ बनाना चाहिए। गन्ने के रस का गाढ़ा सीरा बनाकर यह सीरा भी सीधा सामग्री में डाल सकते हैं। जो बूरा नहीं लेते हैं और मीठे का भी त्याग नहीं है तो यह सीरा वे भी ले सकते हैं। बाजार का गुड़ अशुद्ध होता है। आहार दान सम्बन्धी अन्य नियम ___ 1. आहार के पश्चात जब साधु अंजली छोड़कर कुल्ला करें तो उन्हें लौंग, हल्दी, नमक, माजूफल, शुद्ध सरसों का तेल, शुद्ध मंजन, अमृतधारा, नीबू रस आदि अवश्य दें। 2. गेहूँ और चने की बराबर मात्रा वाले आटे की रोटी में अच्छी तरह घी मिलाकर दें और सादा रोटी चोकर सहित दें, यह स्वास्थ्य वर्धक होती है। 3. मुनि आहार करते समय जब पानी लेते हैं उस समय अजवाइन मिश्रित पानी भी दें, इससे गैस के रोगों में आराम मिलता है। 4. आहार के अन्त में सौंफ, लौंग, अजवाइन, नमक, सौंठ, हल्दी, गुड़ की डली और नींबू का रस अवश्य दें। ये वस्तुएँ ऋतु के अनुसार मर्यादित होनी चाहिए एवं मसाले पूर्ण रूप से पीसे हए हों। 5. मूंग की दाल छिलके वाली ही बनाएँ तथा दाल के पानी में घी मिलाकर देने से लाभदायक होता है। 6. जल के आगे-पीछे किसी तरह का रस नहीं दें और नींबू के साथ घी नहीं दें, क्योंकि वह विषवर्धक होता है। 7. दूध के आगे-पीछे खट्टे पदार्थ, दही, रस आदि नहीं दें।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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