________________
46... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
29. जो मुनि बूरा या गुड़ नहीं लेते हैं उनके लिए छुहारे का पाउडर या चटनी सामग्री में मिलाकर दे सकते हैं।
30. जीरे आदि मसाले खड़े नहीं डालें, अलग से पीसें। साग में सेंककर डालें, पहले डालने से जल जाते हैं एवं सुपाच्य नहीं होते और पेट में गैस बनाते हैं।15
दिगम्बर मतानुसार आहार सामग्री की शुद्धि भी निम्न प्रकार से आवश्यक है
1. जल शुद्धि - कुएँ में जीवानी (पानी छानने के बाद गरणें में रहे हए जीव) डालने के लिए कड़े वाली बाल्टी का प्रयोग करें एवं जल जिस कुएँ आदि से भरा है, जीवानी भी उसी कुएँ में धीरे-धीरे छोड़ें। कड़े वाली बाल्टी जब पानी की सतह के करीब पहुँच जाये, तब धीरे से रस्सी को झटका दें, जिससे जलगत जीवों को पीड़ा न हो।
• जब भी चौके में जल छानें तो एक बर्तन में जीवानी रख लें और जब जल भरने जाएँ तो कुएँ में जीवानी छोड़ दें।
• पानी छानने का गरणा 36 इंच लंबा और 24 इंच चौड़ा हो तथा जिसमें सूर्य का प्रकाश न दिख सके वैसा हो। छन्ना सफेद हो तथा गंदा एवं फटा न हो।
• जीवानी डालने के बाद छन्ने को बाहर सूखी जगह पर निचोड़ें क्योंकि बाल्टी में निचोड़ने से जीवानी के सारे जीव मर जाते हैं।
• कुएँ का पानी प्लास्टिक की बाल्टी में न रखें।
• कुआँ, बहती नदी, बावड़ी, चौड़ी बोरिंग जिसमें जीवानी नीचे तक पहुँच सकती हो तथा होज या टंकी में एकत्रित कर रखा हुआ वर्षा जल भी चूना आदि डालकर चौके के लिए उपयोग कर सकते हैं।
2. दुग्ध शुद्धि - शुद्ध जल के द्वारा गाय-भैंस के थनों को धोकर एवं पौंछकर दूध दुहना चाहिए और दुहने के पश्चात छन्ने से छानकर उसे 48 मिनिट में गर्म कर लेना चाहिए, गर्म न करने पर जिस गाय, भैंस का दूध रहता है उसी आकार के सम्मूछिम जीव उत्पन्न हो जाते हैं।
3. दही शुद्धि - उबले दूध को ठंडा करके, उसमें बादाम या नारियल की नरेटी का एक छोटा टुकड़ा डालकर दही जमाएँ। जहाँ तक संभव हो गाय के दूध का दही दें, वह सुपाच्य रहता है। छाछ बनाते समय उसमें घी नहीं रह जाए इसका ध्यान रखें।