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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...45 के घर्षण से प्रासुक हो जाता है। सभी रस कांच के बर्तन, शीशी आदि में रखें, अन्यथा 30 मिनिट बाद विकृत होने की संभावना रहती हैं। 20. कच्ची मूंगफली, चना, मक्का, ज्वार, मटर आदि जल में उबालकर या सेककर दें तथा सूखी मूंगफली, उड़द, मूंग, चना आदि को साबूत नहीं उबालें, क्योंकि इनके बीच में त्रस जीव रह सकते हैं। 21. किसी भी फल का बीज प्रासुक नहीं होता है इसलिए उनमें से बीज निकालकर ही बहराएं। 22. ड्रायफ्रूट जैसे-काजू, बादाम, पिस्ता आदि के दो भाग करके एवं मुनक्का को बीज रहित करके दें। किसमिस-मनक्का को जल में गलाने से उनके तत्त्व निकल जाते हैं अतएव उन्हें गलाए नहीं, यदि गलाएँ तो उसका जल अवश्य दें। 23. कच्चे दूध, दही, छाछ के साथ दो दल वाली वस्तुएँ जैसे मूंग, उड़द, चना आदि का आहार एक साथ नहीं दें। दो दल वाली ऐसी वस्तुएँ, जिनमें तेल निकलता हो, जैसे मूंगफली, बादाम आदि दही-छाछ के साथ अभक्ष्य नहीं होती हैं अत: इन्हें एक साथ भी दे सकते हैं। 24. पीसे हुए नमक को जल में उबालने पर प्रासुक होता है। आजकल बांटकर गरम कर लेने पर भी उसे प्रासुक मान लेते हैं। मुनियों के लिए दोनों तरह का नमक अलग-अलग कटोरी में रखें। 25. दिगम्बर मतानुसार गीले नारियल को घिसकर उसकी चटनी बनाने पर ही वह प्रासुक होता है अत: गीला नारियल चटनी बनाकर दें। 26. भोजन सामग्री को दूसरी बार गर्म करना, कम पकाना (कच्चा रह जाना), ज्यादा पकाना (जल जाना) यह द्विपक्वाहार कहलाता है। ऐसा आहार साधु के लेने योग्य नहीं होता है तथा आयुर्वेद में भी ऐसे भोजन को विष वर्धक माना गया है इसलिए द्विपक्वाहार न दें। 27. सब्जी वगैरह में अधिक मात्रा में लाल मिर्च का प्रयोग न करें, क्योंकि अधिक मिर्च होने पर मुनियों के पेट में जलन हो सकती है। ___ 28. आहार सामग्री सूर्योदय के दो घड़ी बाद से लेकर सूर्यास्त से दो घड़ी पूर्व तक बनाएँ। रात्रि में बनाया आहार अभक्ष्य हो जाता है।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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