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44... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
10. खाद्य सामग्री एक ही व्यक्ति दिखाये जो चौके का हो और जिसे सभी जानकारी हो।
11. पड़गाहन करते समय महिलायें एवं पुरुष मस्तक ढककर रखें, जिससे बाल गिरने की संभावना न हो।
12. हाथ जोड़कर शुद्धि बोलें। आहार सामग्री लेकर शुद्धि नहीं बोलें, क्योंकि इससे थूक के कण सामग्री में गिर सकते हैं। आहार दान के पश्चात मौन में रहें। बहुत आवश्यक होने पर सामग्री ढंककर सीमित बोलें।
13. पात्र पर जाली बांधे। पात्र गहरा और बड़ा हो, जिससे यदि जीव गिरें तो डूबे नहीं।
14. आहार का दान नवधा भक्ति पूर्वक करें, क्योंकि इस विधिपूर्वक आहार करवाने से पुण्य का बंध होता है। यहाँ नवधा भक्ति से तात्पर्य पड़गाहन, उच्चासन, पाद प्रक्षालन, पूजन, नमन, मन:शुद्धि, वचन शुद्धि एवं काय शुद्धि इन नौ प्रकार के आचारों का परिपालन करना है।14 ___15. अहिंसक मुनि किसी भी वनस्पति को रस के रूप में, साग के रूप में, शेक (गाढ़ा रस) के रूप में या चटनी के रूप में ही लेते हैं गृहस्थ के समान सचित्त फल के रूप में नहीं लेते।
16. फलों में जैसे कि नाशपति, सेव, केला, अंगूर, अमरूद आदि के टुकड़ों को 5-10 मिनिट पानी में उबालने से प्रासुक हो जाते हैं, फिर उन्हें आहार के रूप में बहराएँ। श्वेताम्बर परम्परानुसार किसी भी प्रकार का फल उसके बीज निकालने के 48 मिनिट पश्चात प्रासुक एवं ग्राह्य होता है। दिगम्बर मान्यतानुसार जिसका स्पर्श, रस, गंध, वर्ण बदल जाए एवं लौकी की सब्जी जैसे मुलायम हो जाए वही वस्तु प्रासुक कहलाती है। साधु अधपका आहार नहीं ले सकते क्योंकि अंगुल के असंख्यातवें भाग में जीव रहते हैं। ____17. लौकी, परवल, करेला, गिलकी, टिंडा आदि साग उबालकर बहराएं।
18. खरबूजा, पपीता, पका आम, चीकू इन फलों के बीज एवं छिलके दूरकर शेक बनाकर (फेंटकर) बहरायें। इसमें कोई टुकड़ा न रह जाये, सावधानी रखें क्योंकि टुकड़ा अप्रासुक माना जाता है।
19. मौसंबी, संतरा, अनानास, नारियल, सेव, ककड़ी, नीबू आदि का रस बहराएं, इनके दाने अप्रासुक होते हैं अत: उन्हें गर्म करना व्यर्थ है। रस हाथ