SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...43 करें और खाद्य सामग्री का शोधन भी न करें। जो बर्तन स्वयं के उपयोग में लिए हों, उन्हें अग्नि से तपाकर शुद्ध करें। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भी पूर्वोक्त नियमों का पालन करने वाला गृहस्थ आहार दान का अधिकारी होता है।13 आहार दान सम्बन्धी सावधानियाँ पं. राजकुमार शास्त्री के उल्लेखानुसार दिगम्बर मुनि को आहार करवाते समय अग्रलिखित नियमों पर ध्यान देना आवश्यक है 1. पाद प्रक्षालन के पश्चात गंधोदक की थाली में हाथ नहीं धोयें तथा सभी लोग गंधोदक अवश्य लें। 2. चौके में पैर धोने के लिए प्रासुक जल रखें और सभी आहार दाता एड़ी अच्छी तरह धोकर ही प्रवेश करें एवं चौके के अंदर भी अच्छी तरह से हाथ धोयें। ___3. पड़गाहन के समय साफ-सुथरी जगह पर खड़े होवें। जहाँ नाली का पानी बह रहा हो, मृत जीव-जन्तु पड़े हों, हरित घास हो, पशुओं का मल हो, ऐसे स्थान से पड़गाहन न करें एवं मुनियों को चौके तक ले जाते समय भी इन सभी बातों का ध्यान रखें। 4. मुनि की परिक्रमा नीचे देखते हुए करें एवं परिक्रमा करते समय साधु की परछाई पर पैर नहीं पड़े इसका ध्यान रखें। 5. साधु के पड़गाहन के बाद आहार करते समय भी साधु की परछाई पर पैर नहीं पड़े इसका ध्यान रखें। ___6. यदि दूसरे के चौके में प्रवेश करना हो तो श्रावक एवं साधु से अनुमति लेकर ही प्रवेश करें। 7. मनि को आहार देते वक्त इधर-उधर जाना पड़े तो नीचे देखकर जीवों को बचाते हुए चलें। यदि कोई जीव दिखे तो उसे सावधानी से दूर कर दें। 8. पूजन सामग्री एक व्यक्ति चढ़ायें जिससे द्रव्य गिरे नहीं, क्योंकि उससे चीटियाँ आती हैं। खड़े होते समय हाथ जमीन पर नहीं टेकें। ___9. चौकी पड़गाहन से पूर्व ऐसे स्थान पर लगायें, जहाँ पर पर्याप्त प्रकाश हो, ताकि साधु को आहार शोधन में असुविधा न हो।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy