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श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...37 रेशमी वस्त्र ही ग्रहण करूँगा।
• प्रेक्षित वस्त्र ही ग्रहण करूँगा। • गृहस्थ द्वारा अपने उपयोग में लिया हुआ वस्त्र ही ग्रहण करूंगा। • जीर्ण-शीर्ण वस्त्र ही ग्रहण करूँगा।
भिक्षु प्रतिमा का अभ्यासी मुनि अन्तिम दो एषणा से वस्त्र ग्रहण करता है। वस्त्र लेना अति आवश्यक हो और नियम के अनुसार वस्त्र न मिले तो अन्य एषणा से भी ग्रहण कर सकता है, किन्तु अपने नियमानुसार वस्त्र मिल जाने पर उन्हें पूर्वगृहीत वस्त्र का तुरन्त त्याग कर देना चाहिए। 7. श्रुत ज्ञानी-जघन्यत: नवमें पूर्व की आचार वस्तु तक का ज्ञाता हो। इससे
न्यून श्रुतवाला योग्य कालादि का ज्ञान नहीं कर सकता है। उत्कृष्टतः
कुछ कम दश पूर्व का ज्ञाता हो। 8. व्युत्सृष्टकाय-शारीरिक सेवा की आकांक्षा से रहित हो। 9. त्यक्तकाय-शरीर के ममत्व से रहित हो। 10. उपसर्गसहिष्णु-जिनकल्पी की तरह देवकृत, मनुष्यकृत आदि उपसर्गों
को सहने वाला हो। 11. अभिग्रह वाली एषणा लेने वाला-संसृष्टा, असंसृष्टा, उद्धृता,
अल्पलेपा, अवगृहीता, प्रगृहीता और उज्झितधर्मा-इन सात प्रकार की एषणाओं (भिक्षाओं) में से प्रारम्भ की दो छोड़कर शेष पाँच में से भी एक पानी की और एक आहार की इस प्रकार दो एषणाओं का अभिग्रह होता
है-ऐसी एषणा लेने वाला हो। 12. अलेप आहार लेने वाला-चिकनाई रहित भोजन लेने वाला हो। 13. अभिग्रहवाली उपधि लेने वाला-प्रतिमाकल्प के अनुरूप एवं अभिग्रह से - प्राप्त उपधि ग्रहण करने वाला हो।
आचारदिनकर के अनुसार प्रतिमाधारी मुनि समग्र विद्याओं में निपुण हो, बुद्धिमान हो, वज्रऋषभनाराचसंहनन शरीर वाला हो, महासत्वशाली हो, जिन प्रवचन में सम्यक श्रद्धा रखने वाला हो, सम्यक ज्ञाता हो, स्थैर्य गुण वाला हो, गुरु आज्ञा में तत्पर हो, ज्ञानवान हो, तत्त्ववेत्ता हो, देहासक्ति से रहित हो, धीर हो, जिनकल्पी आचार का पालक हो, परीषह सहिष्णु हो, इन्द्रियजयी हो, गच्छ के ममत्व का त्यागी हो, धातु दोष का प्रकोप होने पर भी काम-भोग की