________________
38...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन अभिलाषा करने वाला न हो, नीरस आहार-पानी को ग्रहण करने वाला हो, ऐसा शुद्धात्मा मुनि प्रतिमा धारण के योग्य होता है।128 भिक्षु प्रतिमा के लिए मुहूर्त विचार
आचारदिनकर के अनुसार भिक्षु प्रतिमा
मृदु- मृगशीर्ष, चित्रा, अनुराधा और रेवती; ध्रुव- रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा और उत्तराभाद्रपदा; चर- पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, घनिष्ठा और शतभिषा; क्षिप्र- अश्विनी, पुष्य, हस्त और अभिजित
इन नक्षत्रों के अंतर्गत एवं मंगलवार और शनिवार को छोड़कर अन्य वारों में स्वीकार करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त उपर्युक्त नक्षत्रादि प्रथम बार भिक्षाटन, तप प्रारम्भ, नन्दि विधान एवं लोच आदि. कार्यों के लिए भी शुभ माने गये हैं। इसमें साधक का चन्द्रबल अवश्य देखना चाहिए।129 भिक्षु प्रतिमा ग्रहण विधि
पंचाशक प्रकरण130, प्रवचनसारोद्धार131 आदि में प्रतिमावहन की विधि इस प्रकार से निर्दिष्ट है-सर्वप्रथम पूर्व गुणों से सम्पन्न मुनि आचार्य की अनुज्ञा प्राप्त करें। यदि आचार्य प्रतिमा वहन करने वाले हों तो वे अपने स्थान पर किसी योग्य व्यक्ति को स्थापित कर तथा शुभ दिन में गच्छवासी सभी मुनियों को आमन्त्रित कर उनसे क्षमायाचनापूर्वक प्रतिमा स्वीकार करें। प्रतिमा वाहक साधु पदधारी न हों तब भी आबालवृद्ध संघ के साथ यथायोग्य क्षमापना करें। जिनके साथ वैमनस्य या वैर विरोध हो, उन्हें विशेष रूप से यह कहते हुए क्षमायाचना करे कि 'मेरे द्वारा प्रमादवश किसी तरह का कटु व्यवहार किया गया हो, तो मैं आज नि:शल्य एवं निष्कषाय होकर उसके लिए क्षमा माँगता हूँ।' इतना कहने के पश्चात सम्पूर्ण गच्छ का परित्याग कर दें।
पहली प्रतिमा की साधना पूर्ण हो जाने के पश्चात, यदि प्रतिमाधारी पुनः गच्छ में सम्मिलित होना चाहता है तो आचार्य से निवेदन करें। तब आचार्य उसके पुनरागमन की जानकारी प्राप्त कर राजा एवं संघ से यह कहते हैं कि 'प्रतिमा जैसे महान तप की साधना करने वाला मुनि यहाँ आ रहा है।' यह सुनकर राजा, श्रेष्ठी आदि सकल संघ सम्मिलित होकर महोत्सव-पूर्वक नगर में प्रवेश करवाते हैं।
तुलना- जैन परम्परा में भिक्षावृत्ति से आहार प्राप्त करने वाले साधुओं को