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श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष... 19
समाधि स्थान भी कहे गये हैं । किन्तु उनमें और नौ गुप्तियों में केवल क्रम सम्बन्धी अन्तर है, शेष नौ स्थानों के नाम परस्पर मिलते-जुलते हैं। 71
रत्नत्रय
मोक्ष प्राप्ति में साधनभूत सम्यक्दर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्र की प्राप्ति करना रत्नत्रय की आराधना है।
ज्ञान-अंग, उपांग, प्रकीर्णक आदि सूत्रों का ज्ञान करना । दर्शन - जीव- अजीव आदि नव तत्त्वों पर यथार्थ श्रद्धा करना। चारित्र-समस्त पाप-व्यापार का समझपूर्वक त्याग करना। बारह प्रकार के तप
शरीर और कर्मों को कृश करना तप कहलाता है। जिस प्रकार सोना अग्नि में तपकर शुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार आत्मा तप रूपी अग्नि में तपकर कर्ममल से रहित हो शुद्ध बन जाती है। मुख्य रूप से तप दो प्रकार का कहा गया है- बाह्य तप और आभ्यन्तर तप। शरीर से सम्बन्ध रखने वाले तप को बाह्य तप कहते हैं। यह छह प्रकार का है - 72
1. अनशन - अशन - भोजन, न निषेध यानी आहार का त्याग करना अनशन है। यह दो प्रकार से होता है - इत्वरिक और यावत्कथिक । उपवास से लेकर छह मास तक का तप इत्वरिक अनशन है । भक्तपरिज्ञा, इंगिनीमरण और पादपोपगमन मरण रूप अनशन करना यावत्कथिक है। 73
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2. ऊनोदरी - ऊन - न्यून, उदर पेट यानी उदरपूर्ति के लिए जितना आहार आवश्यक हो अथवा जितना भोजन उदर में समाता हो उससे कुछ कम आहार करना ऊनोदरी है। आहार की तरह आवश्यक उपकरणों में से कम उपकरण रखना भी ऊनोदरी तप है। आहार एवं उपकरणों में कमी करना द्रव्य ऊनोदरी तप है तथा क्रोधादि का त्याग करना भाव ऊनोदरी तप है।
3. भिक्षाचर्या - इसका दूसरा नाम वृत्तिसंक्षेप है । विविध अभिग्रह लेकर भिक्षा का संकोच करते हुए विचरना भिक्षाचर्या तप है। अभिग्रपूर्वक भिक्षाटन करने से वृत्ति का संकोच होता है। इसलिए इसे 'वृत्तिसंक्षेप' भी कहते हैं।
4. रस परित्याग-विकारोत्पादक दूध, दही, घी आदि विगयों का तथा प्रणीत (स्निग्ध और गरिष्ठ) खान-पान की वस्तुओं का त्याग करना रस परित्याग है।
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