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________________ 386...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन जाए तो राज्य को ही छोड़ देना चाहिए। तदनन्तर स्थंडिल भूमि में शव को विसर्जित करें। फिर जो कांधिये बने हैं वे मुनिगण एक तरफ मुहूर्त भर खड़े रहें। यदि उस बीच मृतात्मा उठकर वहीं पर गिर जाए तो मुनियों को वसति छोड़ देनी चाहिए। तत्पश्चात स्थंडिल भूमि और उद्यान के बीच उत्थित होकर गिर जाए तो गाँव या नगर छोड़ देना चाहिए। यदि उद्यान में उत्थित होकर वहीं गिर जाए तो मोहल्ला छोड़ देना चाहिए। यदि उद्यान और गाँव के बीच उत्थित होकर गिर जाए तो आधा गांव छोड़ देना चाहिए। यदि गाँव के मुख्य द्वार पर उठकर गिर जाए तो गांव को ही छोड़ देना चाहिए। यदि गांव के बीच उत्थित होकर गिर जाए तो देश का लघुतम भाग छोड़ देना चाहिए। यदि मोहल्ले में उठकर गिर जाए तो देश का लघुत्तर (बड़ा) भाग छोड़ देना चाहिए। यदि निवेशन के मध्य उठकर गिर जाए तो देश ही छोड़ देना चाहिए। यदि वसति में प्रवेश कर गिरता है तो राज्य छोड़ देना चाहिए। इसी तरह दूसरी बार परिष्ठापित करने के पश्चात भी व्यन्तराधिष्ठित शव पुन: वसति में प्रवेश कर गिर जाता है तो दो राज्य छोड़ देने चाहिए। पुन: तीसरी बार भी ऐसा ही होने पर तीन राज्य छोड़ देने चाहिए। उसके पश्चात मृतात्मा कितनी ही बार गिरे या उठे तो भी तीन राज्य का ही त्याग करना चाहिए।23 आवश्यकटीका में यह भी वर्णित है कि यदि अशिव आदि कारणों से शव का परिष्ठापन न कर सकें और उसे कुछ समय वसति में ही रखना पड़े तो तप योग की वृद्धि करनी चाहिए। जैसे नवकारसी करने वाले मुनि पोरुषी करें, पोरुषी करने वाले मुनि पुरिमड्ड करें। यदि सामर्थ्य हो तो आयंबिल, उपवास आदि भी करें।24 ___12. नामग्रहण द्वार- यदि उपद्रव आदि कारणों से शव को वसति में रखते अथवा व्यन्तर अधिष्ठित होने के कारण वह उत्थित होकर जितनी संख्या में साधुओं का नाम उच्चरित करे, उन सभी श्रमणों का शीघ्रता से लोच कर देना चाहिए। लोचकृत मुनियों को लगातार पांच उपवास करने का प्रत्याख्यान देना चाहिए। जो इतना तप न कर सके उन्हें यथाशक्ति चार, तीन, दो या एक उपवास का तप करवाना चाहिए। अन्यथा गणभेद कर देना चाहिए अर्थात उतने मुनियों को गच्छ से पृथक कर देना चाहिए।25 13. प्रदक्षिणा द्वार- शव का परिष्ठापन करने के पश्चात लौटते समय
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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