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शय्यातर सम्बन्धी विधि-नियम...283 निराकरण शीघ्र किया जा सकता है। इसके लिए केवल सही समझ एवं संयम निष्ठा की जरूरत है तथा गृहस्थों के द्वारा होने वाली प्रतिक्रियाओं को समझने की जरूरत है। शय्यातरपिंड ग्रहण सम्बन्धी निर्देश
सामान्यत: जैन भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए शय्यातरपिंड ग्रहण करना निषिद्ध कहा गया है यद्यपि इससे सम्बन्धित अन्य विधि-निषेध के निर्देश भी प्राप्त होते हैं। जैसे अनेक व्यक्तियों का आहार एक स्थान पर एकत्रित हो एवं उनमें शय्यातर का भी आहारादि हो तो वह आहार कब, किस स्थिति में अग्राह्य होता है और कब ग्राह्य होता है इत्यादि? संसृष्ट-असंसृष्ट शय्यातरपिंड ग्रहण के विधि-निषेध
बृहत्कल्पसूत्र में कहा गया है कि अनेक व्यक्तियों का संयुक्त आहार यदि शय्यातर के घर की सीमा में हो और वहाँ शय्यातर का आहार अलग पड़ा हो अथवा सबके आहार में मिला दिया गया हो तो भी साधु को ग्रहण करना नहीं कल्पता।
__ अनेक व्यक्तियों का सम्मिलित आहार शय्यातर के घर की सीमा से बाहर हो और वहाँ शय्यातर का आहार अलग भी रखा हो तो उनमें से किसी तरह का आहार मुनि को ग्राह्य नहीं होता है।
यदि अन्य सभी के सम्मिलित आहार में शय्यातर का आहार मिश्रित कर दिया गया हो और जिस हेतु से आहार सम्मिलित किया गया था उन देवताओं का नैवेद्य निकाल दिया गया हो, ब्राह्मण आदि को जितना देना है उतना दे दिया गया हो, उसके बाद भिक्षु लेना चाहे तो ले सकता है। उक्त प्रकार के आहार में शय्यातर के आहार का अलग अस्तित्व नहीं है एवं उसका स्वामित्व भी नहीं रहता है। अत: उस मिश्रित एवं परिशेष आहार में से भिक्षु को ग्रहण करने में शय्यातरपिण्ड का दोष नहीं लगता है।13 शय्यातर के घर आये या भेजे गये आहार ग्रहण के विधि-निषेध
दूसरों के घर से शय्यातर के घर पर लाई जा रही खाद्यसामग्री ‘आहृतिका' कहलाती है और शय्यातर की खाद्यसामग्री अन्य के घर ले जाई जाए तो 'निहतिका' कहलाती है। ये आहृतिका-निहतिका किसी त्यौहार या महोत्सव के निमित्त से हो सकती है। यदि आहृतिका या निहतिका सामग्री में से कोई व्यक्ति साधु को ग्रहण करने हेतु कहे तो शय्यातर की आहृतिका का आहार जब तक